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श्रीगीतगोविन्दम् -श्रील जयदेव गोस्वामी
प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर
अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्
श्रीजयदेव-भणितमिदमभुत-केशव-केलि-रहस्यं। अनुवाद- श्रीजयदेव कवि द्वारा रचित यह अद्भुत मंगलमय ललित गीत सभी के यश का विस्तार करे। यह शुभद गीत श्रीवृन्दावन के विपिन विहार में श्रीराधा जी के विलास परीक्षण एवं श्रीकृष्ण के द्वारा की गयी अद्भुत कामक्रीड़ा के रहस्य से सम्बन्धित है। यह गान वन बिहारजनित सौष्ठव को अभिवर्द्धित करने वाला है। पद्यानुवाद बालबोधिनी- गीत के उपसंहार में कहा गया है कि कवि जयदेव जी ने श्रीकेशव की अद्भुत केलिक्रीड़ा-रहस्य का इस गीत में निरूपण किया है। अद्भुत रहस्य यह है कि एक ही श्रीकृष्ण ने एक ही समय में अनेक वरांगनाओं की अभिलाषाओं की पूर्त्ति करते हुए उनके साथ क्रीड़ा की। ताल और राग में आबद्ध होने के कारण यह गीत अति ललित है। इसके लालित्य का सबसे बड़ा कारण यह है कि इसमें श्रीकेशव की केलि-कला का रहस्य वर्णित है। यह मंजुल मधुर गीत पढ़ने और सुनने वाले भक्तजनों का कल्याण करे और उनके सुयश की वृद्धि करे ॥8॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अन्वय- श्रीजयदेव-भणितम् (श्रीजयदेवेन भणितम् उक्तम्) वृन्दावन-विपिने ललितं (मनोहरं) यशस्यम् (यशस्करम्) इदम् अद्भुत-केशव-केलिरहस्यं (अद्भुतम् वैदग्धी-विशेषेण विचित्रं श्रीराधाविलापपरीक्षणरूपं केशवस्य केलिरहस्यं) [भक्तानां] शुभानि वितनोतु (विस्तारयतु) ॥8॥
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