गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 117

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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प्रस्तुत श्लोक में श्रीकृष्ण का शठत्व, धृष्टत्व, दक्षिणत्व, अनुकूलत्व तथा धूर्त्तत्त्व दिखायी देता है। सभी नायिकाएँ अभिसारिका नायिकाएँ हैं। श्रृंगारतिलक ग्रन्थ में धृष्ट नायक के लक्षण इस प्रकार बताये हैं

अभिव्यक्तान्य तरुणी भोगलक्ष्मापि निर्भय: ।
मिथ्यावचन दक्षश्च धृष्टो यं खलु कथ्यते ॥[1]

अर्थात अन्य तरुणी के साथ सम्भोग के चिह्नों के स्पष्ट रहने पर भी बिना भय के निपुणता के साथ जो झूठ बोलता है, उसे धृष्ट नायक कहते हैं।
शठ के लक्षण इस प्रकार बताये गये हैं-

प्रियं व्यक्ति पुरोऽन्यत्र विप्रियं कुरुते भृशम्।
निगूढ़मपराद्धं च शठोऽयं कथितो बुधै:॥[2]

अर्थात विद्वानों ने उस नायक को शठ नायक कहा है, जो अपने अपराध को छिपाये रहता है। किसी दूसरी नायिका के प्रति आसक्त रहता है और अपनी नायिका के समक्ष मीठी-मीठी बातें करता है ॥7॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शृ. ति. 1-17
  2. शृ. ति. 1-18

संबंधित लेख

गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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