गीत गोविन्द -जयदेव पृ. 111

श्रीगीतगोविन्दम्‌ -श्रील जयदेव गोस्वामी

प्रथम सर्ग
सामोद-दामोदर

अथ चतुर्थ सन्दर्भ
4. गीतम्

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आगे-आगे श्रीहरि पञ्चम राग में गा रहे हैं और गोपी उनके गाने के बाद उसी प्रकार से गा रही है।

गोपी को पीन पयोधरवती बताना उसकी सौन्दर्यातिशयता को सूचित करना है।

इसमें श्रीकृष्ण की अनिपुणता भी प्रदर्शित हो रही है। अतएव उनके द्वारा आलिंगन का प्रयास किये बिना ही गोपी उनका आलिंगन कर रही है। अत: यह केलि रहस्य मधुर होने पर भी श्रीराधा जी के अभाव में कैसे श्रेष्ठ हो सकता है?

परस्पर आलिंगन किये जाने पर ही श्रृंगार रस परिपुष्ट होता है, जो तुम्हारे (श्रीराधा जी के) साथ ही सम्भव है। फिर भी तुम्हारा स्मरण करते हुए श्रीश्यामसुन्दर की लीलाचेष्टा देखो।

श्रृंगार रस में पञ्चम राग का ही प्राय: गान किया जाता है।

भरत मुनि ने कहा भी है-

पञ्चमं मध्य भूयिष्ठं हास्य श्रृंगारयोर्भवेत्र।

अर्थात हास्य तथा श्रृंगार रस में मध्यताल प्रचुर पञ्चम राग ही गाया जाता है ॥2॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीत गोविन्द -श्रील जयदेव गोस्वामी
सर्ग नाम पृष्ठ संख्या
प्रस्तावना 2
प्रथम सामोद-दामोदर: 19
द्वितीय अक्लेश केशव: 123
तृतीय मुग्ध मधुसूदन 155
चतुर्थ स्निग्ध-मधुसूदन 184
पंचम सकांक्ष-पुण्डरीकाक्ष: 214
षष्ठ धृष्ठ-वैकुण्ठ: 246
सप्तम नागर-नारायण: 261
अष्टम विलक्ष-लक्ष्मीपति: 324
नवम मुग्ध-मुकुन्द: 348
दशम मुग्ध-माधव: 364
एकादश स्वानन्द-गोविन्द: 397
द्वादश सुप्रीत-पीताम्बर: 461

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