गीता 6:8

गीता अध्याय-6 श्लोक-8 / Gita Chapter-6 Verse-8

ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रिय: ।
युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चन: ॥8॥



जिसका अन्त:करण ज्ञान विज्ञान से तृप्त है, जिसकी स्थिति विकाररहित है, जिसकी इन्द्रियाँ भली-भाँति जीती हुई हैं और जिसके लिये मिट्टी, पत्थर और सुवर्ण समान हैं, वह योगी युक्त अर्थात् भगवत्-प्राप्त है, ऐसे कहा जाता है ॥8॥

A person is said to be established in self-realization and is called a yogi [or mystic] when he is fully satisfied by virtue of acquired knowledge and realization. Such a person is situated in transcendence and is self-controlled. He sees everything- whether it be pebbles, stones or gold as the same. (8)


ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा = ज्ञान−विजान से तृप्त है अन्त: करण जिसका (तथा); कूटस्थ: = विकार रहित है स्थिति जिसकी (और); विजितेन्द्रिय: = अच्छी प्रकार जीती हुई हैं इन्द्रियां जिसकी(तथा); समलोष्टाश्मकाच्चन:− समान है मिट्टी पत्थर और सुवर्ण जिसके (वह ); युक्त: = युक्त अर्थात् भगवत् की प्राप्ति वाला है; उच्चते = कहा जाता है;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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