गीता 6:12

गीता अध्याय-6 श्लोक-12 / Gita Chapter-6 Verse-12

प्रसंग-


ऊपर के श्लोक में आसन पर बैठकर ध्यान योग का साधन करने के लिये कहा गया। अब उसी का स्पष्टीकरण करने के लिये आसन पर कैसे बैठना चाहिये, साधक का भाव कैसा होना चाहिये, उसे किन-किन नियमों का पालन करना चाहिये और किस प्रकार किसी का ध्यान करना चाहिये, इत्यादि बातें दो श्लोकों में बतलायी गयी हैं-


तत्रैकाग्रं मन: कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रिय: ।
उपविश्यासने युञ्ज्याद्योगमात्मविशुद्धये ॥12॥



उस आसन पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र करके अन्त:करण की शुद्धि के लिये योग का अभ्यास करे ॥12॥

And occupying that seat, concentrating the mind and controlling the functions of the mind and senses, he should practice Yoga for self-purification. ||12||


तत्र = उस; आसने = आसन पर; उपविश्व= बैठकर (तथा); मन: = मनको; एकाग्रम् = एकाग्र; कृत्वा =करके; यतचित्तेन्द्रिय क्रिय: = चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में किया हुआ; आत्मविशुद्धये = अन्त:करण की शुद्धि के लिये; योगम् = योग का; युज्जयात् = अभ्यास करे



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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