धृतराष्ट्र[1] ने पूछा था कि युद्ध में एकत्रित होने के बाद मेरे और पाण्डु[2] के पुत्रों ने क्या किया, इसके उत्तर में संजय[3] ने अब तक धृतराष्ट्र के पक्ष वालों की बात सुनायी। अब पांडव[4] ने क्या किया, उसे पाँच श्लोकों में बतलाते हैं-
तत: शाख्ङश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा: । सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥13॥
इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शोर बड़ा भयंकर हुआ ॥13॥
Then conches kettledrums tabors, drums and trumpets suddenly blared forth and the noise was tumultuous.(13)
तत: = उसके उपरान्त; च =और; भेर्य: = नगारे; पणवआनकगोमुखा: = ढोल मृदंग और नृसिंहादि बाजे; सहसा =एक साथ; एव = ही;अभ्यहन्तयन्त = बजे (उनका); स: = वह; तुमुल: = बड़ा भंयकर; अभवत् =हुआ;
↑संजय धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।