गीता 18:74

गीता अध्याय-18 श्लोक-74 / Gita Chapter-18 Verse-74

प्रसंग-


इस प्रकार धृतराष्ट्र[1] के प्रश्नानुसार भगवान् श्रीकृष्ण[2] और अर्जुन[3] के संवाद रूप गीताशास्त्र का वर्णन करके अब उसका उपसंहार करते हुए संजय[4] दो श्लोकों में धृतराष्ट्र के सामने गीता का महत्त्व प्रकट करते हैं-

संजय उवाच


इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मन: ।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम् ॥74॥



संजय बोले-


इस प्रकार मैंने श्री वासुदेव[5] के और महात्मा अर्जुन के इस अद्भुत रहस्ययुक्त, रोमाञ्चकारक संवाद को सुना ॥74॥

Sanjaya said-


Thus I heard the mysterious and thrilling conversation between Sri Krishna and the high-souled Arjuna. (74)


इति = इस प्रकार; अहम् = मैंने; वासुदेवस्य = श्रीवासुदेव के; च = और; महात्मन: = महात्मा; पार्थस्य = अर्जुन के; इमम् = इस; अद्भुतम् = अद्भुत रहस्ययुक्त; रोमहर्षणम् = रोमाच्चकारक; संवादम् = संवाद को; अश्रौषम् = सुना



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे। गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र। ये पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने थे।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
  3. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  4. संजय धृतराष्ट्र की राजसभा का सम्मानित सदस्य था। जाति से वह बुनकर था। वह विनम्र और धार्मिक स्वभाव का था और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध था। वह राजा को समय-समय पर सलाह देता रहता था।
  5. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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