गीता 18:29

गीता अध्याय-18 श्लोक-29 / Gita Chapter-18 Verse-29

प्रसंग-


इस प्रकार तत्त्व ज्ञान में सहायक सात्त्विक भाव कों ग्रहण कराने के लिये और उसके विरोधी राजस-तामस भावों का त्याग कराने के लिये कर्म-प्रेरणा और कर्मसंग्रह में से ज्ञान, कर्म और कर्ता के सात्त्विक आदि तीन-तीन भेद क्रम से बतलाकर अब बुद्धि और धृति सात्त्विक, राजस, और तामस- इस प्रकार त्रिविध भेद क्रमश: बतलाने की प्रस्तावना करते हैं-


बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु ।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनंजय ॥29॥



हे धनंजय[1]! अब तू बुद्धि का और धृति का भी गुणों के अनुसार तीन प्रकार का भेद मेरे द्वारा सम्पूर्णता से विभागपूर्वक कहा जाने वाला सुन ॥29॥

Now, O winner of wealth, please listen as I tell you in detail of the three kinds of understanding and determination according to the three modes of nature.(29)


धनंजय = हे अर्जुन (तूं) ; बुद्धे: = बुद्धिका ; च = और ; धृते: = धारणशक्ति का ; एव = भी ; गुणत: = गुणों के कारण ; त्रिविघम् = तीन प्रकार का ; भेदम् = भेद ; अशेषेण = संपूर्णता से ; पृथक्त्वेन = विभागपूर्वक ; मया = मेरे से ; प्रोच्यमानम् = कहा हुआ ; श्रृणु = सुन ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः