गीता 17:20

गीता अध्याय-17 श्लोक-20 / Gita Chapter-17 Verse-20

प्रसंग-


तीन प्रकार के तपों का लक्षण करके अब दान के तीन भेद बतलाने के लिये पहले सात्त्विक दान के लक्षण कहते हैं-


दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे ।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम् ॥20।



दान देना ही कर्तव्य है- ऐसे भाव से जो दान देश-काल और पात्र के प्राप्त होने पर उपकार न करने वाले के प्रति दिया जाता है, वह दान सात्त्विक कहा गया है ॥20॥

That gift which is given out of duty, at the proper time and place, to a worthy person, and without expectation of return, is considered to be charity in the mode of Sattvika.(20)


च = और ; (हे अर्जुन) ; दातव्यम् = दान देना ही कर्तव्य है ; इति = ऐसे भावसे ; यत् = जो ; दानम् = दान ; देशे = देश ; काले = काल ; च = और ; पात्रे = पात्र के प्राप्त होने पर ; अनुपकारिणे = प्रत्युपकार न करने वाले के लिये ; दीयते = दिया जाता है ; तत् = वह ; दानम् = दान (तो) ; सात्त्विकम् = सात्त्विक ; स्मृतम् = कहा गया है



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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