गीता 11:33

गीता अध्याय-11 श्लोक-33 / Gita Chapter-11 Verse-33

प्रसंग-


इस प्रकार अर्जुन[1] के प्रश्न का उत्तर देकर अब भगवान् दो श्लोकों द्वारा युद्ध करने में सब प्रकार से लाभ दिखलाकर अर्जुन को युद्ध के लिये उत्साहित करते हुए आज्ञा देते हैं-


तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुड्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ॥33॥



अतएव तू उठ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से संपन्न राज्य को भोग। ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं हे सव्यसाचिन्! तू तो केवल निमित्त मात्र बन जा ॥33॥

There fore, do you arise and win glory; conquering foes, enjoy the affluent kingdom. These warriors stand already slain by Me; be you only an instrument, Arjuna. (33)


उत्तिष्ठ = खड़ा हो(और); यश: = यशको; लभस्व = प्राप्त कर(तथा); शत्रून् = शत्रुओं को; समृद्धम् = धनधान्यसे सम्पत्र; मुड्क्ष्व = भोग(और); एते = यह सब(शूरवीर); पूर्वम् = पहिले से; एव = ही; मया = मेरे द्वारा; निहता: = मारे हुए हैं; सव्यसाचिन् = हे सव्यसाचिन् तूं तो; निमित्तमात्रम् = केवल निमित्त मात्र; एव = ही; भव = हो जा



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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