गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
दूसरा प्रकरण
यही नहीं समझना चाहिये कि धर्म के तत्त्व सिर्फ सूक्ष्म ही हैं- “सूक्ष्मा गतिर्हि धर्मस्य”– [1]; किंतु महाभारत [2]में यह भी कहा है कि “बहु शाखा हानंतिका”- अर्थात उसकी शाखाएं भी अनेक हैं और उससे निकलने वाले अनुमान भी भिन्न भिन्न हैं। तुलाधार और जाजलि के संवाद में, धर्म का विवेचन करते समय, तुलाधार भी यही कहता है कि “सक्ष्मत्वान्न स विज्ञातुं शक्यते बहुनिहव:”- अर्थात धर्म बहुत सूक्ष्म और चक्कर में डालने वाला होता है इसलिये वह समझ में नहीं आता[3]। महाभारतकार व्यासजी इन सूक्ष्म प्रसंगों को अच्छी तरह जानते थे; इसलिये उन्होंने यह समझा देने के उद्देश्य ही से अपने ग्रंथ में अनेक भिन्न भिन्न कथाओं का संग्रह किया है। कि प्राचीन समय के सत्पुरुषों ने ऐसे कठिन मौकों पर कैसा बर्ताव किया था? परन्तु शास्त्र- पद्धति से सब विषयों का विवेचन करके उसका सामान्य रहस्य महाभारत सरीखे धर्म ग्रंथ में कही न कहीं बतला देना आवश्यक था। इस रहस्य या मर्म का प्रतिपादन अर्जुन की कर्तव्य मूढ़ता को दूर करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने पहले जो उपदेश दिया था उसी के आधार पर, व्यासजी ने भगवद्गीता में किया है। इससे ‘गीता’ महाभारत का रहस्योपनिषद और शिरोभूषण हो गई है और महाभारत गीता के प्रतिपादित मूलभूत कर्म तत्त्वों का उदाहरण सहित विस्तृत व्याख्यान हो गया है। इस बात की ओर उन लोगों को अवश्य ध्यान देना चाहिये, जो यह कहा करते हैं कि महाभारत ग्रंथ में ‘गीता’ पीछे से[4] घुसेड़ दी गई है। हम तो यही समझते हैं कि यदि गीता की कोई अपूर्वता या विशेषता है तो वह यही है कि जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है। कारण यह है कि यद्यपि केवल मोक्षशास्त्र अर्थात आदि सदाचार के सिर्फ नियम बतलाने वाले स्मृति आदि, अनेक ग्रंथ हैं; तथापि वेदांत के गहन तत्त्व ज्ञान के आधार पर “कार्याकार्यव्यव स्थिति” करने वाला, गीता के समान, कोई दूसरा प्राचीन ग्रंथ संस्कृत साहित्य में दिखाई नहीं पड़ता। गीता भक्तों को यह बतलाने की आवश्यकता नहीं कि ‘कार्याकार्य व्यवस्थिति’ शब्द गीता ही[5] में प्रयुक्त हुआ है- यह शब्द हमारी मनगढ़ंत नहीं है। भगवद्गीता ही के समान योगवाशिष्ठ में भी वशिष्ठ मुनि ने भी रामचंद्रजी को ज्ञानमूलक प्रवृति मार्ग ही का उपदेश किया है। परन्तु यह ग्रंथ गीता के बाद बना है और उसमें गीता ही का अनुसरण किया गया है; अतएव ऐसे ग्रंथों से गीता की उस अपूर्वता या विशेषता में, जो ऊपर कही गई है, कोई बाधा नहीं होती। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
प्रकरण | नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज