गीता रहस्य -तिलक पृ. 4

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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पहला प्रकरण

जिससे कहना पड़ता है कि यह गीता मुसलमानी राज्य के बाद की होगी। भागवत पुराण ही के समान देवी भागवत में भी, सातवे स्कंध के ३१ से ४० अध्याय तक, एक गीता है जिसे देवी से कही जाने के कारण, देवी गीता कहते है। खुद भगवद्गीता ही का सार अग्रिम पुराण के तीसरे खंड के ३८०वें अध्याय में, तथा गरुड़ पुराण के पूर्वखंड के २४२वें अध्याय में, दिया हुआ है। इसी तरह कहा जाता है कि वशिष्ठजी ने जो उपदेश रामचंद्रजी को दिया था उसी को योगवशिष्ठ कहते हैं। परन्तु इस ग्रंथ के अंतिम (अर्थात निर्वाण) प्रकरण में ‘अर्जुननोपाख्यान’ भी शामिल है जिसमें उस भगवद्गीता का सारांश दिया गया है कि जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था; इस उपाख्यान में भगवद्गीता के अनेक श्लोक ज्यों के त्यों पाये जाते हैं। [1] ऊपर कहा जा चुका है कि पूने में छपे हुए पद्म पुराण में शिव गीता नहीं मिलती; परन्तु उसके न मिलने पर भी इस प्रति के उत्‍तरखंड के १७१ से १८८ अध्याय तक भगवद्गीता के माहात्मय का वर्णन है और भगवद्गीता के प्रत्येक अध्याय के लिये माहात्मय-वर्णन में एक एक अध्याय है और उसके संबंध में कथा भी कही गई है।
इसके सिवा वराह पुराण में एक गीता-माहात्मय है और शिव पुराण में तथा वायु पुराण में भी गीता-माहात्मय का होना बतलाया जाता है। परन्तु कलकत्ते के छपे हुए वायु पुराण में वह हमें नहीं मिला। भगवद्गीता की छपी हुई पुस्तकों के आरंभ में 'गीता-ध्यान’ नामक नौ श्‍लोकों का एक प्रकरण पाया जाता है। नहीं जान पड़ता कि यह कहाँ से लिया गया है; परन्तु इसका भीष्मद्रोणतटा जयद्रथजला के, थोडे़ हेरफेर के साथ, हाल ही में प्रकाशित ‘उरू भंग’ नामक भास कविकृत नाटक के आरंभ में दिया हुआ है। इससे ज्ञात होता है कि उक्त ध्यान, भास कवि के समय के अनंतर प्रचार में आया होगा। क्योंकि यह मानने की अपेक्षा कि भास सरीखे प्रसिद्ध कवि ने इस श्‍लोक को गीता-ध्यान से लिया है, यही कहना अधिक युक्ति संगत होगा कि गीता-ध्यान की रचना, भिन्न भिन्न स्थानों से लिये हुए और कुछ नये बनाये हुए श्लोकों से, की गई है।
भास कवि कालिदास से पहले हो गया है इसलिये उसका समय कम से कम संवत् (शक तीन सौ) से अधिक अर्वाचीन नहीं हो सकता[2]। ऊपर कही गई बातों से यह बात अच्छी तरह ध्यान में आ सकती है कि भगवद्गीता के कौन कौनसे और कितने अनुवाद तथा कुछ हेर फेर के साथ कितनी नकलें, तात्पर्य और माहात्म्य पुराणों में मिलते है। इस बात का पता नहीं चलता कि अवधूत और अष्टावक्र आदि दो चार गीताओं को कब और किसने स्वतंत्र रीति से रचा अथवा वे किस पुराण से ली गई हैं। तथापि इन सब गीताओं की रचना तथा विषय-विवेचन को देखने से यही मालूम होता है कि ये सब ग्रंथ भगवद्गीता के जगत प्रसिद्ध होने के बाद ही बनाये गये है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. योग. ६ पू.सर्ग. ५२-५८
  2. उपर्युक्त अनेक गीताओं तथा भगवद्गीता को श्रीयुत हरि रघुनाथ भागवत आज कल पूने से प्रकाशित कर रहे हैं।

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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