गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
ग्यारहवाँ प्रकरण
अनुगीता के इस श्लोक से ‘’प्रवृत्ति लक्षणो योग: ज्ञानं संन्यासलक्षणम् प्रगट होता है, कि इस प्रवृत्ति मार्ग का ही एक और नाम ‘योग‘ था[1]। और इसी से नारायण के अवतार श्रीकृष्ण ने, नर के अवतार अर्जुन को गीता में जिस धर्म का उपदेश दिया है, उसको गीता में ही ‘योग’ कहा है। आज कल कुछ लोगों की समझ है कि भागवत और स्मार्त, दोनों पन्थ उपास्य–भेद के कारण पहले उत्पन्न हुए थे; पर हमारे मत में यह समझ ठीक नहीं। क्योंकि इन दोनों मार्गों के उपास्य भिन्न भले ही हों, किन्तु उनका अध्यात्मज्ञान एक ही है। और, अध्यात्म-ज्ञान की नींव एक ही होने से यह सम्भव नहीं, उदात्त ज्ञान में पारगंत प्राचीन ज्ञानी पुरुष केवल उपास्य के भेद को लेकर झगड़ते रहें। इसी कारण से भगवद्गीता[2] एवं शिवगीता[3] दोनों ग्रन्थों में कहा है, कि भक्ति किसी की करो, पहुँचेगी वह एक ही परमश्वर को। महाभारत के नारायणीय धर्म में तो इन दोनों देवताओं का अभेद यों बतलाया गया है, कि नारायण और रुद्र एक ही हैं, जो रुद्र के भक्त हैं व नारायण के भक्त हैं और जो रुद्र के द्वेषी हैं, वे नारायण के भी द्वेषी हैं[4]। हमारा यह कहना नहीं है, कि प्राचीन काल में शैव और वैष्णवों का भेद ही न था; पर हमारे कथन का तात्पर्य यह है, कि ये दोनों-स्मार्त और भागवत-पन्थ शिव और विष्णु के उपास्य भेद-भाव के कारण भिन्न भिन्न नहीं हुए हैं; ज्ञानोत्तर निवृत्ति या प्रवृत्ति, कर्म छोडें या नहीं, केवल इसी महत्व के विषय में मत-भेद होने से ये दोनों पन्थ प्रथम उत्पन्न हुए हैं। आगे कुछ समय के बाद जब मूल भागवतधर्म का प्रवृत्ति मार्ग या कर्मयोग लुप्त हो गया और उसे भी केवल विष्णु-भक्तिप्रधान अर्थात् अनेक अंशों में निवृत्तिप्रधान आधुनिक स्वरूप प्राप्त हो गया, एवं इसी के कारण जब वृथाभिमान से ऐसे झगड़े होने लगे कि तेरा देवता ‘शिव‘ है और मेरा देवता ‘विष्णु’; तब ‘स्मार्त’ और ‘भागवत’ शब्द क्रमश: ‘शैव’ और ‘वैष्णव’ शब्दों के समानार्थक हो गये और अन्त में आधुनिक भागवतधर्मियों का वेदान्त (दैत या विशिष्टद्वैत ) भिन्न हो गया तथा वेदान्त के समान ही ज्योतिष अर्थात् एकादशी एवं चन्दन लगाने की रीति तक स्मार्त मार्ग से निराली हो गई। किन्तु ‘स्मार्त’ शब्द से ही व्यक्त होता है, कि येह भेद सच्चा और मूल का ( पुराना ) नहीं है। भागवतधर्म भगवान् का ही प्रवृत्त किया हुआ है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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