गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
दसवाँ प्रकरण
ऋग्वेद[1] में भी देवयान और पितृयाण मार्गों का जहाँ पर वर्णन है, वहाँ कालवाचक अर्थ ही विवक्षित है। इससे तथा अन्य अनेक प्रमाणों से हमने यह निश्चय किया है, कि उत्तर गोलार्ध के जिस स्थान में सूर्य क्षितिज पर छ: महीने तक हमेशा देख पड़ता है, उस ध्यान में अर्थात उत्तर ध्रुव के पास या मेरूस्थान में जब पहले वैदिक ऋषियों की बस्ती थी, तब ही से छ: महिने का उत्तरायण रूपी प्रकाशकाल मृत्यु होने के लिये प्रशस्त माना गया होगा। इस विषय का विस्तृत विवेचन हमने अपने दूसरे ग्रन्थ में किया है। कारण चाहे कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि यह समझ बहुत प्राचीन काल से चली आती है; और यही समझ देवयान तथा पितृयाण मार्गों में– प्रगट न हो तो पर्याय से ही– अन्तर्भूत हो गई है। अधिक क्या कहें, हमें तो ऐसा मालूम होता है कि इन दोनों मार्गों का मूल इस प्राचीन समझ में ही है। यदि ऐसा न मानें तो गीता में देवयान और पितृयाण को लक्ष्य करके जो एक बार ‘काल’ [2] और दूसरी बार ‘गति’ या ‘स्मृति’ अर्थात मार्ग[3] कहा है, यानी इन दो भिन्न भिन्न अर्थों के शब्दों का जो प्रयोग किया गया है, उसकी कुछ उपपत्ति नहीं लगाई जा सकती। वेदान्तसूत्र के शाक्करभाष्य में देवयान और पितृयाण का कालवाचक अर्थ स्मार्त है जो कर्मयोग ही के लिये उपयुक्त होता है; और यह भेद करके, कि सच्चा ब्रह्मज्ञानी उपनिषदों में वर्णित श्रौत मार्ग से अर्थात, देवताप्रयुक्त प्रकाशमय मार्ग से ब्रह्मलोक को जाता है, ‘कालवाचक ‘तथा ‘देवताप्रयुक्त ‘अर्थों की व्यवस्था की गई है[4]। परन्तु मूल सूत्रों को देखने से ज्ञात होता है, कि काल की आवश्यकता न रख उत्तरायणादि शब्दों से देवताओं को कल्पित कर देवयान का जो देवतावाचक अर्थ बादरायणाचार्य न निश्चित किया है; वही उनके मतानुसार सर्वत्र अभिप्रेत होगा; और यह मानना भी उचित नहीं है कि गीता में वर्णित मार्ग उपनिषदों की इस देवयान गति को छोड़ कर स्वतंत्र हो सकता है। परन्तु यहाँ इतने गहरे पानी में बैठने की कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि यद्यपि इस विषय में मतभेद हो कि देवयान और पितृयाण के दिवस, रात्रि, उत्तरायण आदि शब्द ऐतिहासिक दृष्टि से मूलारम्भ में कालवाचक थे या नहीं; तथापि यह बात निर्विवाद है, कि आगे यह कालवाचक अर्थ छोड़ दिया गया। अन्त में इन दोनों पदों का यही अर्थ निश्चित तथा रूढ़ हो गया है कि–काल की अपेक्षा न रख चाहे कोई किसी समय मरे–यदि वह ज्ञानी हो तो अपने कर्मानुसार प्रकाशमय मार्ग से, और केवल कर्मकांडी हो तो अन्धकारमय मार्ग से परलोक को जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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