गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
पहला प्रकरण
इसका फल यह हुआ कि जो अर्जुन पहले भीष्म आदि गुरुजनों की हत्या के भय के कारण युद्ध से पराड़मुख हो रहा था, वही अब गीता का उपदेश सुन अपना यथोचित कर्तव्य समझ गया और अपनी स्वतंत्र इच्छा से युद्ध के लिये तत्पर हो गया। यदि हमें गीता के उपदेश का रहस्य जानना हैं तो उपक्रमोपसंहार और परिणाम को अवश्य ध्यान में रखना पड़ेगा। भक्ति से मोक्ष कैसे मिलता हैं ब्रह्माज्ञान या पातंजलयोग से मोक्ष की सिद्धि कैसे होती हैं इत्यादि, केवल निवृतिमार्ग या कर्म त्यागरूप संन्यास-धर्म-संबंधी प्रशनों की चर्चा करने का कुछ उदेश्य नहीं था। भगवान् श्रीकृष्ण का यह उदेश्य नहीं था कि अर्जुन संन्यास-दीक्षा लेकर और बैरागी बन कर भीख मांगता फिरे, या लंगोटी लगाकर और नीम क पते खा कर मृत्युपर्यंत हिमालय में योगाभ्यास साधता रहे। भगवान का यह भी उदेश्य नहीं था कि अर्जुन धनुष-बाण को फेक दे और हाथ में वीणा तथा मृदंग लेकर कुरुक्षेत्र की धर्मभूमि में उपस्थित भारतीय क्षात्र समाज के सामने, भगवन नाम का उच्चारण करता हुआ, बृहनला के समान और एक बार अपना नाच दिखावे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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