गीता रहस्य -तिलक पृ. 140

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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सातवां प्रकरण

ईश्‍वरकृष्णा ने अपनी ‘कारिका’ के अंत में कहा है कि ‘सृष्टितंत्र’ नामक साठ प्रकरणों के एक प्राचीन और विस्तृत ग्रंथ का भावार्थ (कुछ प्रकरणों को छोड़कर) सत्तर आर्या-छन्दों में इस ग्रन्थ में दिया गया है। यह सृष्टितंत्र ग्रन्थ अब उपलब्ध नहीं है। इसीलिये इन कारिकाओं के आधार पर ही कापिल सांख्यशास्‍त्र के मूल सिद्धान्तों का विवेचन हमने यहाँ किया है। महाभारत में सांख्य मत का निरूपण कई अध्यायों में किया है। परंतु उसमें वेदान्त-मतों का भी मिश्रण हो गया है, इसलिये कपिल के शुद्ध सांख्य मत को जानने के लिये दूसरे ग्रंथों को भी देखने की आवश्यकता होती है। इस काम के लिये उक्त सांख्यकारिका की अपेक्षा कोई भी अधिक प्राचीन ग्रंथ इस समय उपलब्ध नहीं है। भगवान ने भगवद्गीता में कहा है कि ‘सिद्धानां कपिलो मुनिः’ [1]- सिद्धों में कपिल मुनि मैं हूँ।इस वचन से कपिल मुनि की योग्यता भली-भाँति सिद्ध होती है। तथापि यह बात मालूम नहीं कि कपिल ऋषि कहाँ और कब हुए। शांतिपर्व [2]में एक जगह लिखा है कि सनत्कुमार, सनक , सनंदन, सनत्सुजात, सन, सनातन और कपिल ये सातों ब्रह्मदेव के मानस पुत्र हैं। इन्हें जन्म से ही ज्ञान हो गया था।

दूसरे स्थान [3] में कपिल के शिष्य आसुरि के चेले पंचशिख ने जनक को सांख्यशास्त्र का जो उपदेश दिया था उसका उल्लेख है। इसी प्रकार शांतिपर्व[4] में भीष्म ने कहा है कि सांख्यों ने सृष्टि-रचना के बारे में एक बार जो ज्ञान प्रचलित कर दिया है वही ‘‘पुराण,इतिहास,अर्थशास्त्रों’’ आदि में पाया जाता है। यही क्यों, यहाँ तक कहा गया है कि ‘‘ज्ञानं च लोके यदिहास्ति किञ्चित सांख्यागतं तच्च महन्महात्मन’’ अर्थात इस जगत का सब ज्ञान सांख्यों से ही प्राप्त हुआ है [5]। यदि इस बात पर ध्यान दिया जाय कि वर्तमान समय में पश्चिमी ग्रन्‍थकार उत्‍क्रांति-वार का उपयोग सब जगह कैसे किया करते हैं, तो यह बात आश्चर्यजनक नहीं मालूम होगी कि इस देश के निवासियों ने भी उत्क्रांति-वाद की बराबरी के सांख्यशास्त्र का सर्वत्र कुछ अंश में स्वीकार किया है। 'गुरुत्वाकर्षण', सृष्टि-रचना 'उत्क्रांतितत्त्व'[6] या 'ब्रह्मात्मैक्य' के समान उदात्त विचार सैकड़ों बरसों में ही किसी महात्मा के ध्यान में आया करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गी. 10.16
  2. 340.67
  3. शां. 218
  4. 301,108,109
  5. म्‍हा. शां 301,109
  6. Evoluton Theory के अर्थ में 'उत्‍क्रांति-तत्‍व' का उपयोग आजकल किया जाता है, इसलिये हमने भी यहाँ उसी शब्‍द का प्रयोग किया हैा परन्‍तु संस्‍कृत में 'उत्‍क्रान्ति' शब्‍द का अर्थ मृत्‍यु हैा इस कारण 'उत्‍क्रान्ति' के बदले गुण-विकास, गुणोत्‍कर्ष, या गुणपरिणाम आदि सांख्‍य-वादियों के शब्‍दों का उपयोग करना हमारी समझ में अधिक योग्‍य होगा।

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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