गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 19

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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वैराग्य होने पर फिर समता की प्राप्ति कब होगी?
शास्त्रों के अनेक सिद्धान्तों से, मतभेदों से विचलित हुई तेरी बुद्धि जब संसार से सर्वथा विमुख होकर परमात्मा में अचल हो जायगी, तब तेरे को योग (साध्यरूप समता) की प्राप्ति हो जायगी।।53।।

अर्जुन बोले- समता को प्राप्त हुए स्थिर बुद्धि वाले मनुष्य के क्या लक्षण होते हैं?
भगवान् बोले- हे पार्थ! जब साधक मन में रहने वाली सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग कर देता है और अपने-आपसे अपने-आपमें ही सन्तुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ (स्थिर बुद्धिवाला) कहलाता है।।54-55।।

वह स्थितप्रज्ञ बोलता कैसे है?
भैया! उसका बोलना साधारण क्रियारूप से नहीं होता, प्रत्युत भावरूप से होता है। वर्तमान में व्यवहार करते हुए दुःखों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता और सुखों की प्राप्ति होनेपर जिसके मन में स्पृहा नहीं होती तथा जो राग, भय और क्रोध से रहित हो गया है, वह मननशील मनुष्य स्थितप्रज्ञ कहलाता है। सब जगह आसक्तिरहित हुआ मनुष्य प्रारब्ध के अनुसार अनुकूल परिस्थिति के आने पर हर्षित नहीं होता और प्रतिकूल परिस्थिति के आनेपर द्वेष नहीं करता, उसकी बुद्धि स्थिर हो गयी है अर्थात् पहले उसने ‘मुझे परमात्मा की प्राप्ति ही करनी है’- ऐसा जो निश्चय किया था, वह अब सिद्ध हो गया है।।56-57।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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