गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 16

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

Prev.png

उनका परमात्मप्राप्ति का एक निश्चय क्यों नहीं होता?

  1. जो कामनाओं में तन्मय हो रहे हैं,
  2. स्वर्ग को ही श्रेष्ठ मानने वाले हैं,
  3. वेदों में कहे हुए सकाम कर्मों में ही प्रीति रखनेवाले हैं, तथा
  4. भोगों के सिवाय और कुछ है ही नहीं- ऐसा कहने वाले हैं, वे बेसमझ मनुष्य इस पुष्पित (दिखाऊ शोभायुक्त) वाणी को कहा करते हैं, जो कि जन्मरूप कर्मफल को देने वाली है तथा भेाग और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये बहुत-सी क्रियाओं का वर्णन करने वाली है। भोगों का वर्णन करने वाली पुष्पित वाणी से जिनका चित्त हर लिया गया है अर्थात् भोगों की तरफ खिंच गया है और जो भोग तथा ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त हैं, उन मनुष्यों की परमात्मा में एक निश्चयवाली बुद्धि नहीं हो सकती।।42-44।।

भोग और ऐश्वर्य की आसक्ति से बचने के लिये मेरे को क्या करना चाहिये भगवन्?
वेद तीनों गुणों के कार्य (संसार) का वर्णन करने वाले हैं, इसलिये हे अर्जुन! तू वेदों में कहे हुए सकाम कर्मों से रहित हो जो, राग-द्वेष आदि द्वन्द्वों से रहित हो जा और नित्य-निरन्तर रहने वाले परमात्मतत्त्व में स्थित हो जा। तू अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति की और प्राप्त वस्तु की रक्षा की भी चिन्ता मत कर और केवल परमात्मा के परायण हो जा अर्थात् एक परमात्मप्राप्ति का ही लक्ष्य रख।।45।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः