पतन कैसे होगा?
अहंकार का आश्रय लेकर तूने युद्ध न करने का जो निश्चय किया है, तेरा वह निश्चय झूठा है; क्योंकि तेरा क्षात्र स्वभाव तेरे को युद्ध में लगा ही देगा। हे कुन्तीनन्दन! अपने स्वभावजन्य कर्म से बँधा हुआ तू मोह के कारण जो युद्ध नहीं करना चाहता, उसको तू क्षात्र स्वभाव के परवश होकर करेगा।।59-60।।
वह क्षात्र स्वभाव कैसे युद्धरूप कर्म करायेगा महाराज?
हे अर्जुन! अन्तर्यामी ईश्वर सम्पूर्ण प्राणियों के हृदय में स्थित है। वह अपनी माया से शरीररूपी यन्त्र पर आरूढ़ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को उनके स्वभाव के अनुसार घुमाता है।।61।।
इस परवशता से निकलने का उपाय क्या है?
हे भरतवंशी अर्जुन! तू सर्वभाव से उन अन्तर्यामी ईश्वर की ही शरण में चला जा। उसकी कृपा से तुझे संसार से सर्वथा उपरति और अविनाशी परमपद की प्राप्ति हो जायगी। मैंने यह गोपनीय-से-गोपनीय शरणागतिरूप ज्ञान तेरे से कह दिया। अब तू इस पर अच्छी तरह से विचार करके जैसा चाहता है, वैसा कर।।62-63।।
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