गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 149

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

अठारहवाँ अध्याय

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पराभक्ति प्राप्त होने से क्या होता है?
उस पराभक्ति से वह मैं जो कुछ हूँ और जैसा हूँ- इस तरह मेरे को तत्त्व से जानकर तत्काल मेरे में प्रविष्ट हो जाता है।।55।।

आपकी प्राप्ति का और भी कोई बढ़िया उपाय है क्या?
हाँ, बहुत बढ़िया उपाय है।

वह क्या है महाराज?
जो अनन्यभाव से मेरा आश्रय लेता है, वह भक्त सदा सब कर्म करता हुआ भी मेरी कृपा से निरन्तर रहने वाले

तो मुझे क्या करना चाहिये?
भैया! तू केवल मेरे परायण होकर सम्पूर्ण कर्मों को चित्त से मेरे अर्पण कर दे अर्थात् सम्पूर्ण कर्म, पदार्थ आदि से अपनापन हटा ले और तू समता को धारण करके निरन्तर मेरे में मनवाला हो जा।।57।।

आप में मनवाला होने से क्या होगा?
मेरे में मन वाला होने से तू मेरी कृपा से सम्पूर्ण विघ्न-बाधाओं को तर जायगा। परन्तु अगर तू अहंकार के कारण मेरी बात नहीं मानेगा तो तेरा पतन हो जायगा।।58।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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