गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 144

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

अठारहवाँ अध्याय

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राजस सुख कौन-सा होता है?
जो सुख इंद्रियों के द्वारा विषयों के सम्बंध से आरम्भ में अमृत की तरह और परिणाम में जहर की तरह होता है, वह राजस सुख है॥38॥

तामस सुख कौन-सा होता है?
जो सुख इन्द्रियों के द्वारा विषयों के सम्बन्ध से आरम्भ में और परिणाम में स्वयं को मोहित करने वाला होता है, वह तामस सुख है।।39।।

भगवन! अब यह बताइये कि तीनों गुणों को लेकर और किन-किन वस्तुओं के तीन-तीन भेद होते हैं?
भैया! पृथ्वी में, स्वर्ग में, देवताओं में तथा इनके सिवाय और कहीं भी ऐसी कोई भी वस्तु, पदार्थ आदि नहीं है, जो प्रकृति से उत्पन्न इन तीनों गुणों से रहित हो अर्थात् सम्पूर्ण त्रिलोकी की तीनों गुणों में ही है।।40।।

इन गुणों से छूटने का उपाय क्या है भगवन्?
हे परंतप! इस संसार में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन चारों वर्णों का विभाग मनुष्यों के स्वभाव से उत्पन्न हुए गुणों के अनुसार ही किया गया है। अतः अपने-अपने वर्ण के अनुसार नियत कर्म करना ही गुणों से छूटने का उपाय है।।41।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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