गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 143

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

अठारहवाँ अध्याय

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राजसी धृति कौन-सी होती है?
हे पृथानन्दन! फल को चाहने वाला मनुष्य जिस धृति से धर्म, अर्थ, और काम (भोग) को अत्यन्त आसक्तिपूर्वक धारण करता है, वह धृति राजसी है।।34।।

तामसी धृति कौन-सी होती है?
हे पार्थ! दुष्ट बुद्धि वाला मनुष्य जिस धृति से निद्रा, भय, शोक (चिन्ता), विषाद (दुःख) और मद (घमण्ड) को भी नहीं छोड़ता, वह धृति तामसी है।।35।।

तामस पुरुष निद्रा आदि को क्यों नहीं छोड़ता?
इनको सुख मिलने के कारण ही नहीं छोड़ता।

वह सुख क्या है भगवन्?
हे भरतर्षभ! उस सुख के भी तीन भेद तू मेरे में सुन। जिस सुख में अभ्यास से रमण होता है और जिससे दुःखों का अन्त हो जाता है, ऐसा वह परमात्मविषयक बुद्धि की प्रसन्नता से पैदा होने वाला जो सुख सांसारिक आसक्ति के कारण आरम्भ में जहर की तरह और परिणाम में अमृत की तरह होता है, वह सात्त्विक सुख है।।36-37।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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