ज्ञान, कर्म और कर्ता के तीन-तीन भेद तो आपने बता दिये, अब इनके सिवाय और किन-किनके भेदों को जानने की आवश्यकता है?
हे धनन्जय! कर्म-संग्राहक करणों में बुद्धि और धृति (धारणा शक्ति) मुख्य है, जिनके भेदों को जानने की बहुत आवश्यकता है। अतः अब तू गुणों के अनुसार बुद्धि और धृति के भी तीन प्रकार के भेद अलग-अलग रूप से सुन, जिनको मैं पूर्णरूप से कहूँगा। हे पृथानन्दन! जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्ति को, कर्तव्य और अकर्तव्य को भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को ठीक-ठीक जानती है, वह सात्त्विकी है।।29-30।।
राजसी बुद्धि क्या है?
हे पार्थ! जो बुद्धि धर्म और अधर्म को, कर्तव्य और अकर्तव्य को भी ठीक तरह से नहीं जानती, वह राजसी है।।31।।
तामसी बुद्धि क्या है?
हे पृथानन्दन! तमोगुण से घिरी हुई जो बुद्धि धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म तथा सब बातों को उलटा ही मान लेती है, वह तामसी है।।32।।
सात्त्विकी धृति कौन-सी होती है भगवन्?
हे पार्थ! समता से युक्त जिस अव्यभिचारिणी धृति के द्वारा मनुष्य मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है।।33।।
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