आत्मा को अकर्ता मानने से क्या होता है भगवन्?
जिसमें ‘मैं करता हूँ’-ऐसा अहंकृतभाव नहीं है और जिसकी बुद्धि कर्मों के फल में लिप्त नहीं है, वह सम्पूर्ण प्राणियों को मारकर भी न तो मारता है और न बँधता है।।17।।
जब कर्मों के साथ आत्मा का सम्बन्ध नहीं है तो फिर कर्म किसकी प्रेरणा से होते हैं?
ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता- इन तीनों से कर्मप्रेरणा होती है तथा करण, कर्म और कर्ता-इन तीनों से कर्मसंग्रह होता है।।18।।
कर्मप्रेरणा और कर्मसंग्रह में मुख्य कौन हैं और उनके खास-खास भेद क्या हैं भगवन्?
गुणों के सम्बन्ध से प्रत्येक पदार्थ के भिन्न-भिन्न भेदों की गणना करने वाले शास्त्र में गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म और कर्ता के तीन-तीन मुख्य भेद कहे गये हैं, उनको भी तू ठीक तरह से सुन।।19।।
ज्ञान के तीन भेदों में से सात्त्विक ज्ञान कौन-सा है?
जिस ज्ञान से साधक सम्पूर्ण विभक्त प्राणियों में विभागरहित एक अविनाशी सत्ता को देखता है, वह ज्ञान सात्त्विक है।।20।।
|