गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 139

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

अठारहवाँ अध्याय

Prev.png

आत्मा को अकर्ता मानने से क्या होता है भगवन्?
जिसमें ‘मैं करता हूँ’-ऐसा अहंकृतभाव नहीं है और जिसकी बुद्धि कर्मों के फल में लिप्त नहीं है, वह सम्पूर्ण प्राणियों को मारकर भी न तो मारता है और न बँधता है।।17।।

जब कर्मों के साथ आत्मा का सम्बन्ध नहीं है तो फिर कर्म किसकी प्रेरणा से होते हैं?
ज्ञान, ज्ञेय और परिज्ञाता- इन तीनों से कर्मप्रेरणा होती है तथा करण, कर्म और कर्ता-इन तीनों से कर्मसंग्रह होता है।।18।।

कर्मप्रेरणा और कर्मसंग्रह में मुख्य कौन हैं और उनके खास-खास भेद क्या हैं भगवन्?
गुणों के सम्बन्ध से प्रत्येक पदार्थ के भिन्न-भिन्न भेदों की गणना करने वाले शास्त्र में गुणों के अनुसार ज्ञान, कर्म और कर्ता के तीन-तीन मुख्य भेद कहे गये हैं, उनको भी तू ठीक तरह से सुन।।19।।

ज्ञान के तीन भेदों में से सात्त्विक ज्ञान कौन-सा है?
जिस ज्ञान से साधक सम्पूर्ण विभक्त प्राणियों में विभागरहित एक अविनाशी सत्ता को देखता है, वह ज्ञान सात्त्विक है।।20।।

Next.png

संबंधित लेख

गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः