गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 12

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दूसरा अध्याय

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तो फिर शोक क्यों होता है?
न जानने से।

जानना कैसे हो?
वह जानना अर्थात् अनुभव करना इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि से नहीं होता, इसलिये इस शरीरी को देखना, कहना, सुनना सब आश्चर्य की तरह ही होता है। अतः इसको सुन करके कोई भी नहीं जान सकता अर्थात् इसका अनुभव तो स्वयं से ही होता है।।29।।

तो फिर वह कैसा है?
हे भरतवंशी अर्जुन! सबके देह में रहने वाला यह देही नित्य ही अवध्य है, ऐसा जानकर तुझे किसी भी प्राणी के लिये शोक नहीं करना चाहिये।।30।।

शोक दूर करने की तो आपने बहुत-सी बातें बता दीं, पर मुझे जो पाप का भय लग रहा है, वह कैसे दूर हो?
अपने धर्म (क्षात्र धर्म) को देखकर भी तुझे भयभीत नहीं होना चाहिये; क्योंकि क्षत्रिय के लिये धर्ममय युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारक कर्म नहीं है।।31।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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