गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 111

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौदहवाँ अध्याय

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सत्त्वगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को देह में कैसे बाँधता है भगवन्?
हे निष्पाप अर्जुन! उन तीनों गुणों में सत्त्वगुण स्वरूप से तो निर्मल होने के कारण प्रकाशक और निर्विकार है, पर वह सुख और ज्ञान की आसक्ति से देही को देह में बाँध देता है।।6।।

रजोगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को कैसे बाँधता है?
हे कुन्तीनन्दन! तृष्णा और आसक्ति को पैदा करने वाले रजोगुण को तू राग-स्वरूप समझ। वह कर्मों की आसक्ति से देही को देह में बाँधता है।।7।।

तमोगुण का क्या स्वरूप है और वह देही को कैसे बाँधता है?
हे भरतवंशी अर्जुन! तमोगुण अज्ञान से उत्पन्न होता है और सम्पूर्ण प्राणियों को मोहित करने वाला है। वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देही को देह में बाँधता है।।8।।

बाँधने से पहले तीनों गुण क्या करते हैं भगवन्?
हे भारत! सत्त्वगुण तो सुख में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है, रजोगुण कर्म में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है और तमोगुण ज्ञान को ढककर तथा प्रमाद में लगाकर मनुष्य पर अपना अधिकार जमाता है।।9।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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