गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 102

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

तेरहवाँ अध्याय

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तो इसका विस्तार से वर्णन कहाँ हुआ है भगवन्?
ऋषियों ने, वेदों की ऋचाओं और युक्तियुक्त तथा निश्चित किये हुए ब्रह्मसूत्र के पदों ने इसको विस्तार से अलग-अलग कहा है।।4।।

वह क्षेत्र क्या है?
मूल प्रकृति, समष्टि बुद्धि (महत्तत्त्व), समष्टि अहंकार, पाँच महाभूत, दस इन्द्रियाँ, एक मन और इन्द्रियों के पाँच विषय- यह चौबीस तत्त्वों वाला क्षेत्र है।[1]।।5।।

वह क्षेत्र किन विकारों वाला है?
इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, शरीर, प्राणशक्ति और धारण-शक्ति इन सात विकारों सहित यह क्षेत्र मैंने संक्षेप से कहा है।।6।।

विकारों सहित क्षेत्र ‘यह’ रूप से (अपने से अलग) कैसे दीखे भगवन्?

1. अपने में श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव।

2. अपने में दिखावटीपन का न होना।

3. शरीर, मन और वाणी से किसी को किन्चिन्मात्र भी दुःख न देना।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. मूल प्रकृति सबकी माँ है। उस प्रकृति से बुद्धिरूपी पुत्री पैदा हुई। बुद्धि से अहंकाररूपी पुत्र पैदा हुआ। अहंकार की सन्तान हुई- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और पाँच विषयों से कोई सन्तान पैदा नहीं हुई, अतः वे विकृति हैं। तात्पर्य है कि प्रथम सात प्रकृति-विकृति है और बाकी सोलह विकृति हैं

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