तो इसका विस्तार से वर्णन कहाँ हुआ है भगवन्?
ऋषियों ने, वेदों की ऋचाओं और युक्तियुक्त तथा निश्चित किये हुए ब्रह्मसूत्र के पदों ने इसको विस्तार से अलग-अलग कहा है।।4।।
वह क्षेत्र क्या है?
मूल प्रकृति, समष्टि बुद्धि (महत्तत्त्व), समष्टि अहंकार, पाँच महाभूत, दस इन्द्रियाँ, एक मन और इन्द्रियों के पाँच विषय- यह चौबीस तत्त्वों वाला क्षेत्र है।[1]।।5।।
वह क्षेत्र किन विकारों वाला है?
इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, शरीर, प्राणशक्ति और धारण-शक्ति इन सात विकारों सहित यह क्षेत्र मैंने संक्षेप से कहा है।।6।।
विकारों सहित क्षेत्र ‘यह’ रूप से (अपने से अलग) कैसे दीखे भगवन्?
1. अपने में श्रेष्ठता के अभिमान का अभाव।
2. अपने में दिखावटीपन का न होना।
3. शरीर, मन और वाणी से किसी को किन्चिन्मात्र भी दुःख न देना।
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