गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 97

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


कर्मणो ह्यपि बोद्धव्‍एं बोद्धव्‍यं च विकर्मण:।
अकर्मणश्‍च बोद्धव्‍यं गहना कर्मणो गति:।।17।।

कर्म, निषिद्धकर्म और अकर्म का भेद जानना चाहिए। कर्म की गति गूढ़ है।

कर्मण्‍यकर्म य: पश्‍येदकर्मणि च कर्म य:।
स बुद्धिमान्‍मनुष्‍येषु स युक्‍त: कृत्‍स्‍नकर्मकृत।।18।।

कर्म में जो अकर्म देखता है और अकर्म में जो कर्म देखता है, वह लोगों में बुद्धिमान गिना जाता है। वह योगी है और वह संपूर्ण कर्म करने वाला है।

टिप्‍पणी- कर्म करते हुए भी जो कर्त्तापन का अभिमान नहीं रखता, उसका कर्म अकर्म है और जो कर्म का बाहर से त्‍याग करते हुए भी मन के महल बनाता ही रहता है, उसका अकर्म कर्म है। जिसे लकवा हो गया है वह जब इरादा करके, अभिमानपूर्वक बेकार हुए अंग को हिलाता है, तब हिलता है। वह बीमार अंग को हिलाने रूपी क्रिया का कर्त्ता बना। आत्मा का गुण अकर्त्ता का है। मोहग्रस्‍त होकर अपने को कर्त्ता मानने-वाले आत्‍मा को मानो लकवा हो गया है और वह अभिमानी होकर कर्म करता है। इस भाँति जो कर्म की गति को जानता है, वही बुद्धिमान योगी कर्त्तव्‍यपरायण गिना जाता है। ʻमैं करता हूँ ̕ यह मानने वाला कर्म-विकर्म का भेद भूल जाता है और साधन के भले-बुरे का विचार नहीं करता। आत्‍मा की स्‍वाभाविक गति ऊर्ध्‍व है, इसलिए जब मनुष्‍य नीति-मार्ग से हटता है तब यह कहा जाना चाहिए कि उसमें अहंकार अवश्‍य है। अभिमान रहित पुरुष के कर्म से ही सात्त्विक होते हैं।

यस्‍य सर्वे समारम्‍भा: कामसंकल्‍पवर्जिता:।
ज्ञानाग्निनदग्‍धकमणिं तमाहु: पण्डितं बुधा:।।19।।

जिसके समस्‍त आरंभ कामना और संकल्‍परहित हैं, उसके कर्म ज्ञानरूपी अग्नि द्वारा भस्‍म हो गये हैं, ऐसे ही ज्ञानी लोग पंडित कहते हैं।

 
त्‍यक्‍त्‍वा कर्मफलासंगं नित्‍यतृप्‍तो निराश्रय:।
कर्मण्‍यभिप्रवृत्‍तोऽपि नैव किंचित्‍करोति स:।।20।।

जिसने कर्म फल का त्‍याग किया है, जो सदा संतुष्‍ट रहता है, जिसे किसी आश्रय की लालसा नहीं है, वह कर्म में अच्‍छी तरह लगे रहने पर भी, कहा जा सकता है कि वह कुछ भी नहीं करता।

टिप्‍पणी- अर्थात उसे कर्म का बंधन भोगना नहीं पड़ता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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