गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 95

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
चौथा अध्याय
ज्ञानकर्मसंन्‍यासयोग


जन्‍म कर्म च मे दिव्‍यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत:।
त्‍यक्‍त्‍वा देहं पुनर्जन्‍म नैति मामेति सोऽर्जुन।।9।।

हे अर्जुन! इस प्रकार जो मेरे दिव्‍य जन्‍म और कर्म का रहस्‍य जानता है वह शरीर का त्‍याग करके पुनर्जन्‍म नहीं पाता, बल्कि मुझे पाता है।

टिप्‍पणी- क्‍योंकि जब मनुष्‍य का दृढ़ विश्‍वास हो जाता है कि ईश्वर सत्‍य की ही जय कराता है तब वह सत्‍य को नहीं छोड़ता, धीरज रखता है, दु:ख सहन करता है और ममतारहित रहने के कारण जन्‍म-मरण के चक्‍कर से छूटकर ईश्वर का ही ध्‍यान धरते हुए उसी में लय हो जाता है।

वीतरागभयक्रोधा मन्‍नया मामुपाश्रिता:।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भवमागता:।।10।।

राग, भय और क्रोध से रहित हुए मेरा ही ध्‍यान धरते हुए, मेरा ही आश्रय लेने वाले ज्ञानरूपी तप से पवित्र हुए बहुतों ने मेरे स्‍वरूप को पाया है।

ये यथा मां प्रपद्यन्‍ते तांस्‍तथैव भजाम्‍यहम्।
मम वर्त्‍मानुवर्तन्‍ते मनुष्‍या: पार्थ सर्वश:।।11।।

जो जिस प्रकार मेरा आश्रय लेते हैं, उस प्रकार मैं उन्‍हें फल देता हूँ। चाहे जिस तरह भी हो, हे पार्थ! मनुष्‍य मेरे मार्ग का अनुसरण करते हैं, मेरे शासन में रहते हैं।

टिप्‍प्‍णी- तात्‍पर्य, कोई ईश्‍वरी नियम का उल्‍लंघन नहीं कर सकता। जैसा बोता है, वैसा काटता है; जैसा करता है, वैसा भरता है, ईश्वरी कानून में कर्म के नियम में अपवाद नहीं है। सबको समान अर्थात अपनी योग्‍यता के अनुसार न्‍याय मिलता है।

कांक्षन्‍त: कर्मणां सिद्धिं यजन्‍त इह देवता:।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा।।12।।

कर्म की सिद्धि चाहने वाले इस लोक में देवताओं को पूजते हैं। इससे उन्‍हें कर्मजनित फल तुरंत मनुष्‍य-लोक में ही मिल जाता है।

टिप्‍पणी- देवता से मतलब स्‍वर्ग में रहने वाले इंद्र-वरुणादि व्‍यक्तियों से नहीं है। देवता का अर्थ है ईश्‍वर की अंशरूपी शक्ति। इस अर्थ में मनुष्‍य भी देवता है। भाप, बिजली आदि महान शक्तियां देवता हैं। उनकी आराधना करने का फल तुरंत और इसी लोक में मिलता हुआ हम देखते हैं। वह फल क्षणिक होता है। वह आत्मा को ही संतोष नहीं देता तो मोक्ष तो दे ही कहाँ से सकता है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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