गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 92

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
तीसरा अध्याय
कर्मयोग


तस्‍मात्त्वमिन्द्रियाण्‍यादौ नियम्‍य भरतर्षभ।
पाप्‍मानं प्रजहि ह्योनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।41।।

हे भरतर्षभ ! इसलिए तू पहले तो इंद्रियों को नियम में रखकर ज्ञान और अनुभव का नाश करने वाले इसी पापी का त्‍याग अवश्‍य कर।

इन्द्रियाणि पराण्‍याहुरिन्द्रियेभ्‍य: परं मन:।
मनसस्‍तु परा बुद्धियों बुद्धे: परतस्‍तु स:।।42।।

इंद्रियां सूक्ष्‍म हैं, उनसे अधिक सूक्ष्म मन है, उससे अधिक सूक्ष्‍म बुद्धि है। जो बुद्धि से भी अत्‍यंत सूक्ष्‍म है वह आत्मा है।

टिप्‍प्‍णी- तात्‍पर्य यह कि यदि इंद्रियां वश में रहें तो सूक्ष्‍म काम को जीतना सहज हो जाय।

एवं बुद्धे: परं बुद्ध्‍वा संस्‍तभ्‍यात्‍मानमात्‍मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।43।।

इस प्रकार बुद्धि से परे आत्‍मा को पहचानकर और आत्‍मा द्वारा मन को वश में करके, हे महाबाहो! कामरूप दुर्जय शत्रु का संहार कर।

टिप्‍प्‍णी- यदि मनुष्‍य शरीरस्‍थ आत्‍मा को जान ले तो मन उसके वश में रहेगा, इंद्रियों के वश में नही रहेगा। और मन जीता जाय तो काम क्‍या कर सकता है?

ॐतत्‍सत्

इति श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषद् अर्थात ब्रह्म-विद्यान्‍तर्गत योगशास्‍त्र के श्री कृष्‍णार्जुनसंवाद का ʻकर्मयोग̕ नामक तीसरा अध्‍याय।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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