गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुन विषाद योग
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रिय:। हे कृष्ण! अधर्म की वृद्धि होने से कुल-स्त्रियां दूषित होती हैं और उनके दूषित होने से वर्ण संकर होता है। संकरो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च। ऐसे संकर से कुल-घातक का और उसके कुल का नरकवास होता है और पिंडोदक की क्रिया से वंचित रहने के कारण उसके पितरों की अधोगति होती है। दोषैरेते: कुलघ्नानां वर्णसंकरकारकै:। कुल घातक लोगों के इस वर्णसंकर को उत्पन्न करने वाले दोषों से सनातन जाति, धर्म और कुल धर्मों का नाश होता है। उत्सन्नकुलधर्माणां मनष्याणां जनार्दन। हे जनार्दन! कुल-धर्म का नाश हुए मनुष्य का अवश्य नरक में वास होता है, ऐसा हम लोग सुनते आये हैं। अहो वत महत्पापं कतुं व्यवसिता वयम। अहो, कैसे दु:ख की बात है कि हम लोग महापाप करने को तुल गये हैं, अर्थात राज्य-सुख के लोभ से स्वजन को मारने को तैयार हो गये हैं! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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