गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुनविषाद योग
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थ: पितृनथ पितामहान्। वहाँ दोनों सेनाओं में विद्यमान बड़े-बूढ़े, पितामह, आचार्य, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र, मित्र, ससुर और स्नेहियों को अर्जुन ने देखा। इन सब बांधवों को यों खड़ा देखकर, खेद उत्पन्न होने के कारण दीन बने हुए, कुंतीपुत्र इस प्रकार बोले- अर्जुन उवाच अर्जुन बोले— हे कृष्ण! युद्ध के लिए उत्सुक होकर इकट्ठे हुए इन स्वजन स्नेहियों को देखकर मेरे गात्र शिथिल होते जा रहे हैं, मुंह सूख रहा है, शरीर कांप रहा है और रोएं खड़े हो रहे हैं। गाण्डीवं स्त्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते। हाथ से गांडीव सरक रहा है, त्वचा बहुत जलती है। मुझसे खड़ा नही रहा जाता, क्योंकि मेरा दिमाग चक्कर-सा खा रहा है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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