गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 59

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पहला अध्याय
अर्जुनविषाद योग


तत्रापश्‍यत्स्थितान्‍पार्थ: पितृनथ पितामहान्।
आचार्यन्‍मातुलान्‍भ्रातृन् पुत्रान्‍पौत्रान्‍सखींस्‍तथा।।26।।
श्‍वशुरान्‍सुहृदश्‍चैव सेनयोरुभयोरपि।
तान्‍समीक्ष्‍य स कौन्‍तेय: सर्वान्‍बन्‍धूनवस्थितान्।।27।।
कृपया परयाविष्‍टो विषीदन्निदमव्रवीत्।

वहाँ दोनों सेनाओं में विद्यमान बड़े-बूढ़े, पितामह, आचार्य, मामा, भाई, पुत्र, पौत्र, मित्र, ससुर और स्‍नेहियों को अर्जुन ने देखा। इन सब बांधवों को यों खड़ा देखकर, खेद उत्पन्‍न होने के कारण दीन बने हुए, कुंतीपुत्र इस प्रकार बोले-

अर्जुन उवाच
दृष्‍ट्वेमं स्‍वजनं कृष्‍ण युयुत्‍सुं समुपस्थितम्।।28।।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्‍यति।
वेपथुश्‍च शरीरे में रोमहर्षश्‍च जायते।।29।।

अर्जुन बोले—

हे कृष्‍ण! युद्ध के लिए उत्‍सुक होकर इकट्ठे हुए इन स्‍वजन स्‍नेहियों को देखकर मेरे गात्र शिथिल होते जा रहे हैं, मुंह सूख रहा है, शरीर कांप रहा है और रोएं खड़े हो रहे हैं।

गाण्‍डीवं स्‍त्रंसते हस्‍तात्त्‍वक्‍चैव परिदह्यते।
न च शक्‍नोम्‍यवस्‍थातुं भ्रमतीव च मे मन:।।30।।

हाथ से गांडीव सरक रहा है, त्‍वचा बहुत जलती है। मुझसे खड़ा नही रहा जाता, क्‍योंकि मेरा दिमाग चक्‍कर-सा खा रहा है?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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