गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 31

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
ग्‍यारहवां अध्‍याय


भगवान बोले - लोकों का नाश करने वाला मैं काल हूँ। तू चाहे लड़ या न लड़, इन सबका नाश समझ। तू तो निमित्त- मात्र है।

अर्जुन बोला—हे देव, हे जगन्निवास, आप अक्षर हैं, सत हैं, असत हैं और उससे जो परे है, यह भी आप ही हैं। आप आदि- देव हैं, आप पुराण-पुरुष हैं, आप इस जगत के आश्रय हैं। आप ही जानने योग्‍य हैं। वायु, यम, अग्नि, प्रजापति भी आप ही हैं। आपको हजारों नमस्‍कार पहुँचें। अब अपना मूल रूप धारण कीजिये।

इस पर भगवान ने कहा - तेरे ऊपर प्रसन्‍न होकर मैंने तुझे अपना विश्‍वरूप दिखाया है। वेदाभ्‍यास से, यज्ञ से, अन्‍य शास्‍त्रों के अभ्‍यास से, दान से, तप से भी यह रूप नहीं देखा जा सकता, जो तूने आज देखा है। इसे देखकर तू परेशान मत हो। भय त्‍याग कर शांत हो और मेरा परिचित रूप देख। मेरे यह दर्शन देवों को भी दुर्लभ हैं। यह दर्शन केवल शुद्ध भक्ति से ही हो सकते हैं। जो अपने सब कर्म मुझे समर्पण करता है, मुझमें परायण रहता है, मेरा भक्त बनता है, आसक्ति मात्र को छोड़ता है और प्राणी मात्र के विषय में प्रेममय रहता है, वही मुझे पाता है।

टिप्‍पणी - दसवें की भाँति इस अध्‍याय को भी मैंने जान- बूझकर संक्षिप्‍त किया है। यह अध्‍याय काव्‍यमय है। इसलिए या तो मूल में अथवा अनुवाद रूप में जैसा है, वैसा ही बारंबार पढ़ने योग्‍य है। इससे भक्ति का रस उत्‍पन्‍न होने की संभावना है। वह रस पैदा हुआ है या नहीं, यह जानने की कसौटी अंतिम श्‍लोक है। सर्वार्पण बिना और सर्वव्‍यापक प्रेम के बिना भक्ति नहीं है।

ईश्वर के कालरूप का मनन करने से और उसके मुख में सृष्टि मात्र को समा जाना है - प्रति क्षण काल का यह काम चलता ही रहता है - इसका भान आ जाने से सर्वार्पण और जीवमात्र के साथ ऐक्‍य अनायास हो जाता है। चाहे, बिन चाहे, इस मुख में हम अकल्पित क्षण में पड़ने वाले हैं। वहाँ छोटे-बड़े का, नीच-ऊंच का, स्‍त्री-पुरुष का, मनुष्‍य-मनुष्‍येतर का भेद नहीं रहता है। सब कालेश्‍वर के एक कौर हैं, यह जानकर हम क्‍यों दीन, शून्‍यवत न बनें, क्‍यों सबके साथ मैत्री न करें? ऐसा करने- वाले को यह काल-स्‍वरूप भयंकर नहीं, बल्कि शांतिस्‍थल लगेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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