गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 27

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
नवां अध्‍याय


वेद में वर्णित क्रियाएं फल-प्राप्ति के लिए होती हैं। अत: उन्‍हें करने वाले स्‍वर्ग चाहे पावें, पर जन्‍म-मरण के चक्‍कर से नहीं छूटते। पर जो एक ही भाव से मेरा चिंतन करते रहते हैं और मुझे ही भजते हैं, उनका सारा भार मैं उठाता हूँ। उनकी आवश्‍यकताएं मैं पूरी करता हूँ और उसकी मैं ही संभाल करता हूँ। मुझे कुछ, दूसरे देवताओं में श्रद्धा रखकर उन्‍हें भजते हैं।


इसमें अज्ञान है, तथापि अंत में तो वे भी मुझे ही भजने वाले माने जायेंगे, क्‍योंकि यज्ञ मात्र का मैं ही स्‍वामी हूँ। पर मेरी इस व्‍यापकता को न जानकर वे अंतिम स्थिति को पहुँच नहीं सकते। देवताओं को पूजने वाले देवलोक, पितरों को पूजने वाले पितृलोक भूतप्रेतादि को पूजने वाले उनका लोक और ज्ञानपूर्वक मुझे भजने वाले मुझे पाते हैं। जो मुझे एक पत्ता तक भक्तिपूर्वक अर्पण करते हैं, उन प्रयत्‍नशील मनुष्‍यों की भक्ति को मैं स्‍वीकार करता हूँ। इसलिए जो कुछ तू करे, यह सब मुझे अर्पण करके ही कर, तब शुभ-अशुभ फल का उत्तरदायित्‍व तेरा नहीं रहेगा।


जब तूने फलमात्र का त्‍याग कर दिया तब तेरे लिए जन्‍म-मरण के चक्‍कर नहीं रह गये। मुझे सब प्राणी समान हैं। एक प्रिय और दूसरा अप्रिय हो, यह नहीं है। पर जो मुझे भक्तिपूर्वक भजते हैं, वे तो मुझमें हैं और मैं उनमें हूँ। इसमें पक्षपात नहीं है, बल्कि यह उन्‍होंने अपनी भक्ति का फल पाया है इस भक्ति का चमत्‍कार ऐसा है कि जो एक भाव से मुझे भजते हैं, वे दुराचारी हों तो भी साधु बन जाते हैं। सूर्य के सामने जैसे अंधेरा नहीं ठहरता, वैसे मेरे पास आते ही मनुष्‍य के दुराचारों का नाश हो जाता है। इसलिए तू निश्‍चय समझ ले कि मेरी भक्ति करने वाले नाश को प्राप्‍त ही नहीं होते। वे तो धर्मात्‍मा होते हैं और शांति भोगते हैं।

इस भक्ति की महिमा ऐसी है कि जो पाप योनि में जन्‍मे माने जाते हैं वे, और निरक्षर स्त्रियां, वैश्‍य और शूद्र, जो मेरा आश्रय लेते हैं वे, मुझे पाते ही हैं, तब पुण्‍यकर्म करने वाले ब्राह्मण-क्षत्रियों का तो कहना ही क्या रहा! जो भक्ति करता है, उसे उसका फल मिलता है। इसलिए तू जब असार संसार में आ गया है तो मुझे भजकर उससे तर जा। अपना मन मुझमें पिरो दे, मेरा ही भक्‍त रह, अपने यज्ञ भी मेरे लिए कर, अपने नमस्‍कार भी मुझे ही पहुँचा और इस भाँति मुझमें तू परायण होगा और अपनी आत्‍मा को मुझमें होमकर शून्‍यवत हो जायगा तो तू मुझे ही पावेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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