गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 265

गीता माता -महात्मा गांधी

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11 : गीता और रामायण


इस पर भी जो लोग थोड़े-से-थोड़ा समय और ध्यान देकर रामायण तथा गीता में से रसपान करने की आशा है, उनके लिए क्या कहा जाये?

ऊपर के पत्र में लिखा है कि पत्र- लेखक को जैसे ही अपने तन्दुरुस्त होने का ख्याल आता है, विकार फिर से चढ़ दौड़ते हैं। जो बात शरीर के लिए है, वही मन के लिए भी है। जिसका शरीर बिलकुल चंगा है, उसे अपने अच्छेपन का ख्याल कभी आता ही नहीं, न उसकी कोई जरूरत ही है, क्योंकि तुदरुस्ती तो शरीर का स्वभाव है। यही बात मन को भी लागू होती है। जिस दिन मन की तंदुरुस्ती का ख्याल आवे, समझ लें कि विकार पास आकर झांक रहे हैं। अतः मन को हमेशा स्वस्थ बनाये रखना ही है।

इसी कारण रामनाम आदि के जप की बात की शोध हुई और वे गाये गए। जिसके हृदय में हर घड़ी राम का निवास हो, उस पर विकारों का हमला हो ही नहीं सकता। सच तो यह है कि जो शुद्ध बुद्धि से रामनाम का जप करता है, समय पाकर रामनाम उसके हृदय में घर कर लेता है। इस तरह हृदय-प्रवेश होने के बाद रामनाम उस मनुष्य के लिए एक अभेद्य किला बन जाता है। बुराई, बुराई का ख्याल करते रहने से नहीं मिटती। हां, अच्छाई का विचार करने से बुराई जरूर मिट जाती है। लेकिन बहुत बार देखा गया है कि लोग सच्ची नीयत से उल्टी तरकीबें काम में लाते हैं।

‘यह कैसे आई, कहाँ से आई?- वगैरहा विचार करने से बुराई का ध्यान बढ़ता जाता है। बुराई को मेटने का यह उपाय हिंसक कहा जा सकता है। इसका सच्चा उपाय तो बुराई से असहयोग करना है। जब बुराई हम पर आक्रमण करे तो उससे 'भाग जाना' कहने की कोई जरूरत नहीं। हमें तो यह समझ लेना चाहिए कि बुराई नाम की कोई चीज है ही नहीं और हमेशा स्वच्छता का, अच्छाई का, विचार करते रहना चाहिए। ‘भाग जा‘ कहने में डर का भाव है। उसका विचार तक न करने में निडरता है। हमें सदा यह विश्वास बढ़ाते रहना चाहिए कि बुराई मुझे छू तक नहीं सकती। अनुभव द्वारा यह सिद्ध किया जा सकता है।

18 अप्रैल, 1929

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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