गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 242

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्‍दों का अर्थ और स्‍थल-निर्देश)
दो शब्‍द


गांधी जी ने इसमें हरेक पद का अर्थ भी देकर इसकी उपयोगिता बढ़ा दी है। इसलिए इसको ʻगीता-पदार्थ-कोश̕ नाम दिया गया है। इस पदार्थ-कोश में उन्‍होंने पहले संस्‍कृत कोशों में दिये हुए अर्थ ही लिखे थे। बाद में जब उन्‍होंने गीता के अपने अर्थ को स्‍पष्‍ट करने के लिए अनासक्ति योग लिखा तब उसमें दिये हुए अर्थ भी इस पदार्थ-कोश में जोड़ दिये गए। ऑर्डिनेन्‍स राज की धांधली के दिनों में यह संबंधित कोश खो गया। इसलिए अभी -अभी दो-तीन मित्रों ने गांधी जी के मूल हस्‍तलिखित पद से फिर मेहनत करके यह तैयार किया है और आज यह पाठकों के हाथ में दिया जा रहा है।

यह कोश जैसा बना है, उससे गांधी जी को पूर्ण संतोष नहीं है। उनकी इच्‍छा थी कि अर्थ देना ही है तो प्रत्‍येक महत्‍व के शब्‍द को अलग-अलग भाष्‍यकारों ने और गीता के नये-पुराने अभ्‍यासियों ने अलग-अलग जो अर्थ किया है, वह सब व्‍यवस्थित रीति से दें। इससे भाष्‍यार्थ की तुलनात्‍मक अभ्‍यास सुलभ हो जाता।

यह तो अर्थ-भेद की दृष्टि हुई। दूसरी रीति से भी अर्थकोश को शास्‍त्र-शुद्ध करने के लिए शब्‍दों का धात्‍वर्थ देकर उसके बाद गीता-युग तक इन शब्‍दों के अर्थ में कैसे अंतर पड़ता गया और गीता ने इन शब्‍दों का खास क्‍या अर्थ किया है, यह बताना चाहिए। उसके बाद तत्‍वज्ञान के विकास का अनुसरण करके भाष्‍यकारों को यह अर्थ क्‍यों बदलना पड़ा, यह भी थोडे़ में बताना चाहिए इस रीति से अर्थ-विकास की सीढियों अथवा प्रवाह को बताकर गीता के लिए पर्याप्‍त ʻसेमेन्टिकस्̕ [1] बनाना चाहिए। जैसा मनुष्‍यों का विकास होता है, वैसे मनुष्‍य-जाति में प्रयुक्‍त महान शब्‍दों के अर्थ में भी विकास होता जाता है। शब्‍द भी वस्‍तुत: सगुण पुरुष ही हैं।

इस अर्थ-विकास के संबंध में अनासक्तियोग की प्रस्‍तावना में गांधी जी ने लिखा है: ʻ"मनुष्‍य की भाँति महावाक्‍यों के अर्थ का विकास भी होता ही रहता है। भाषाओं के इतिहास की जांच कीजिए तो मालूम होगा कि अनेक महान शब्‍दों के अर्थ नित्‍य नये होते रहे हैं...... गीताकार ने महा-शब्‍दों का व्‍यापक अर्थ करके अपनी भाषा का भी व्‍यापक अर्थ करना हमें सिखाया है।"

आगे चलकर वह लिखते हैं: ʻʻगीता एक महान धर्मकाव्‍य है। उसमें जितने गहरे उतरेंगे, उतने ही नये और सुन्‍दर अर्थ उसमें से मिलेंगे..... गीता में आये हुए महाशब्‍दों का अर्थ युग-युग में बदलता और विस्‍तृत होता रहेगा। गीता का मूल मंत्र कभी नहीं बदल सकता। वह मंत्र जिस रीति से साधा जा सके, उस रीति से जिज्ञासु चाहे जो अर्थ कर सकता है।"

गांधी जी की इच्‍छा के अनुसार ऐसा व्‍यापक और शास्‍त्र संपूर्ण गीता-पदार्थ-कोश जब तैयार होगा, तब होगा। इस समय तो हम उनकी बारह वर्ष पहले की प्रवृत्ति का फल गीताभ्‍यासियों के आगे रखते हैं।

सरस्‍वती-पूजन

24-6-36 -दत्तात्रेय बालकृष्‍ण कालेलकर

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शब्दार्थ-शास्‍त्र

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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