गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 240

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्‍दों का अर्थ और स्‍थल-निर्देश)
दो शब्‍द

 

गीता के शब्‍दों की[1] अक्षरानुक्रमणिका, उनका स्‍थल-निर्देश और उनका अर्थकोश गांधी जी ने सन 1922-23 में यरवदा जेल में तैयार किया। जेल की पढ़ाई और साहित्‍य-प्रवृत्ति के सम्‍बन्‍ध में गांधी जी ने लिखा है:

'ʻजब से मैंने संसार में प्रवेश किया तब से मुझे लगा कि सामान्‍य ज्ञान प्राप्‍त करने के लिए मुझे पढ़ना चाहिए; किंतु मुझे जीवन में पहले से ही तूफान और संकट दिखाई दिये। इसलिए साहित्‍य में रस लेने को अधिक समय न मिला। सन 1894 के बाद कुछ पढ़ने-पढ़ाने का समय मुझे मिला तो वह केवल दक्षिण अफ्रीका की जेलों में ही। मुझे पढ़ने का शौक पैदा हुआ, इतना ही नहीं, बल्कि अपना संस्‍कृत का ज्ञान पूरा करने और तमिल, हिंदी तथा उर्दू का अभ्‍यास करने को मेरा मन हुआ। दक्षिण अफ्रीका की जेलों में मेरी पढ़ने की अभिरुचि तीव्र हुई थी। इसलिए दक्षिण अ‍फ्रीका के अपने आख़िरी कारावास के समय मुझे समय से पहले छोड़ दिया गया तब मुझे दु:ख हुआ।"

ʻʻइसलिए हिन्‍दुस्‍तान में जब ऐसा अवसर आया तब मैंने आनंदपूर्वक उसका स्‍वागत किया। मैंने यरवदा में अभ्‍यास का एक नियमित क्रम बना लिया, जिसे पूरा करने के लिए 6 वर्ष काफी न थे।

ʻʻजर्जरित शरीर वाला 58 वर्ष का बूढ़ा होते हुए भी मैंने 24 वर्ष के तरुण के समान उत्‍साहपूर्वक अभ्‍यास शुरू किया। मैं अपने समय के एक-एक क्षण का हिसाब रखता और चाहता था कि छूटने पर मैं उर्दू और तमिल का अच्‍छा अभ्‍यासी होकर और संस्‍कृत का अच्‍छा ज्ञान लेकर ही बाहर निकलूं। संस्‍कृत के मूल ग्रंथ पढ़ने की मेरी कामना पूरी हो जाती, किंतु ऐसा होने का संयोग न था। दुर्भाग्‍य से मैं बीमार पड़ गया। उनके परिणामस्‍वरूप मैं छूटा और मेरे अभ्‍यास के रंग में भंग हो गया।"

फिर भी गांधी जी ने अनेक भाषाओं की छोटी-बड़ी डेढ़ सौ मिलाकर किताबें तो पढ़ ही डालीं। इनमें महाभारत, गीता और उपनिषदों का अभ्‍यास तो था ही। वह लिखते हैं:

ʻʻजिन पुस्‍तकों के बिना मेरा काम चल ही नहीं सकता था वे महाभारत, रामायण और भागवत थीं। वेद को मूल में देखने की इच्‍छा उपनिषद् से सतेज हुई। उसकी उत्‍कट कल्‍पनाओं से अपार आनंद हुआ और उसकी आध्‍यात्मिकता से मेरी आत्मा शांत हुई।'

इस पढ़ाई के साथ-साथ उन्‍होंने यह गीता-पदार्थ-कोश भी तैयार किया। इसके संबंध में उन्‍होंने लिखा है: ʻʻजेल में किये गए अपने अभ्‍यास की इस समालोचना को पूरा करने से पहले मैं विद्यार्थी पाठक को नियमित कार्य करने की उपयोगिता के संबंध में तथा शुष्‍क वस्‍तुओं को रसपूर्ण बनाने की रीति के संबंध में दो शब्‍द कह दूं।"

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पदों का

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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