गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 239

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-पदार्थ-कोश
(गीता के शब्‍दों का अर्थ और स्‍थल-निर्देश)
निवेदन


गीता धर्म-दर्शक कोश है, आत्मा की उलझन को सुलझाने वाली प्रचंड शक्ति है, दीन-दुखियों का आधार है, सोते से जगाने वाली है, जो ऐसा मानता है, उसे ही गीता-गान मदद दे सकता है। यहाँ यह कहने का आशय बिल्‍कुल नहीं है कि बिना अर्थ समझे गीता-गान स्‍वतन्‍त्र रूप से मनुष्‍य का कल्‍याण करता है। प्रयत्‍नपूर्वक वाले हुए तोते को गीता अवश्‍य कंठ कराई जा सकती है; किन्‍तु उससे तोते का या उसके शिक्षक को जरा भी पुण्‍य नहीं मिलने का।

गीता जीती-जागती, जीवन देने वाली, अमर माता है। दूध पिलाकर पालने-पोसने वाली माता एक दिन धोखा देकर चली जायेगी। हम देखते हैं, असंख्‍य माताएं अपनी सन्‍तान को तूफान में से बचाने में असमर्थ रहती हैं, किन्‍तु गीता-माता का आश्रय लेने वाला भयंकर तूफान में से उबर जाता है। वह नित्‍य जाग्रत है। कभी धोखा नहीं देती; किन्‍तु जैसे बिना मांगे मां भी दूध नहीं पिलाती, वैसे ही गीतामाता भी बिना मांगे कुछ नहीं देती। वह किसी को अपनी गोद में लेने से पहले उसकी कठिन परीक्षा लेती है; पूर्ण भक्ति की अपेक्षा रखती है। शुष्‍क भक्ति से भी काम नहीं चलेगा। वह अनन्‍य भक्ति चाहती है। इसलिए जो लोग उसे सर्वार्पण करने को तैयार नहीं, उन्‍हें आश्रय देना वह बिल्कुल अस्‍वीकार कर देती है।

भौतिक शास्‍त्र के बड़े-बड़े़ अभ्‍यासी उसके पीछे पागल हो जाते हैं , तब कहीं उन्‍हें उसका कुछ दर्शन होता है। एम.ए., बी.ए., होने वाले रात-दिन पढ़ते हैं, उस पर पैसा खर्च करते हैं शरीर सुखाते हैं। इस प्रकार प्रयत्‍न करने वालों में से कुछ ही लोग पहली बार में उत्तीर्ण होते हैं। उत्तीर्ण न होने वाले निराश न होकर बार-बार प्रयत्‍न करते हैं और उत्तीर्ण होने पर ही शांति से बैठते हैं। और अन्‍त में-?

गीतामृत का पान करने के लिए तो इन प्रयत्‍नों की अपेक्षा बहुत अधिक प्रयत्‍न की आवश्‍यकता होनी चाहिए और है ही। परंतु उस अमृत- पान की गरज कितनों को है? गरज है तो कितने लोग जी-तोड़कर प्रयत्‍न करने को तैयार होते हैं? हम जानते हैं कि जैसे मैंने बताया है उस दृष्टि से, गीता-भक्ति करने वालों की संख्‍या नहीं के बराबर है, तो भी सब लोग यह कबूल करते है कि गीता सारे उपनिषदों का दोहन है। किसी भी हिन्‍दू को उसके ज्ञान से रहित नहीं होना चाहिए; किन्‍तु आजकल धर्म मात्र की कीमत घट गई है। उसके कारणों में जाने का यह अवसर नहीं है। मैंने तो, यह गीता-पदार्थ-कोश प्रकाशित हो रहा है, इस निमित्त से जिज्ञासुओं का ध्‍यान गीता रूपी रत्‍न की तरफ खींचने और उसका सदुपयोग कैसे हो सकता है, यह बताने का प्रयत्‍न इस निवेदन में किया है, वह सफल हो।

सेगांव, वर्धा

24-9-36

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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