गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-प्रवेशिका
अर्जुन उवाच अर्जुन बोले - हे देव! आपको देह में मैं देवताओं को, भिन्न–भिन्न प्रकार के सब प्राणियों के समुदायों को, कमलासन पर विराजमान ईश ब्रह्मा को, सब ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देखता हूँ। अनेकबाहुदरवक्तनेत्रं आपको मैं अनेक हाथ, उदर, मुख और नेत्रयुक्त अनंत रूप वाला देखता हूँ। आपका अंत नहीं है, न मध्य है, न आपका आदि है, हे विश्वेश्वर आपके विश्वरूप का मैं दर्शन कर रहा हूँ। त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं आपको मैं जानने योग्य परम अक्षर रूप, दस जगत का अंतिम आधार, सनातन धर्म का अविनाशी रक्षक और सनातन पुरुष मानता हूँ। अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य- जिसका आदि, मध्य या अंत नहीं है, जिसकी शक्ति अनंत है, जिसके अनंत बाहु हैं, जिसके सूर्य-चंद्र रूपी नेत्र हैं, जिसका मुख प्रज्वलित अग्नि के समान है और जो अपने तेज से इस जगत को तपा रहा है, ऐसे आपको मैं देख रहा हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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