गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 23

गीता माता -महात्मा गांधी

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गीता-बोध
सातवां अध्‍याय


अनेक जन्‍मों के बाद ही मनुष्‍य ऐसा ज्ञान पाता है और उसे पाने पर इस जगत में मुझ वासुदेव के सिवा और कुछ नहीं देखता। पर कामना वाले मनुष्‍य तो भिन्‍न–भिन्‍न देवताओं को भजते हैं और जिसकी जैसी भक्ति, उसको वैसा फल देने वाला तो मैं ही हूँ।


उन ओछी समझवालों को मिलने वाला फल भी वैसा ही ओछा होता है और उतने से ही उनको संतोष भी रहता है। वे अपनी कमअक्‍ली से मानते हैं कि मुझे वे इंद्रियों द्वारा पहचान सकते हैं। वे नहीं समझते कि मेरा अविनाशी और अनुपम स्‍वरूप इंद्रियों से परे है तथा हाथ, कान, नाक आंख इत्‍यादि द्वारा पहचाना नहीं जा सकता। इसे मेरी योगमाया समझ कि इस प्रकार सारी चीजों का विधाता होने पर भी अज्ञानी लोग मुझे पहचान नहीं सकते।

राग-द्वेष के द्वारा सुख-दुख होते ही रहते हैं और उसके कारण जगत मोहग्रस्‍त रहता है, पर जो उसमें से छूट गये हैं और जिनके आचार-विचार निर्मल हो गये हैं, वे तो अपने व्रत में निश्‍चल रहकर निरंतर मुझे ही भजते हैं। वे पूर्ण ब्रह्मरूप से सब प्राणियों में भिन्‍न-भिन्‍न प्रतीत होने वाले जीवरूप में रहे हुए मुझे और मेरे कर्म को जानते हैं। यों जो मुझे अभिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ रूप से पहचानते हैं और इससे जिन्‍होंने समत्‍व प्राप्‍त किया है, वे मृत्यु के अनंतर जन्‍म–मरण के बंधन से मुक्‍त हो जाते हैं; क्योंकि इतना जान लेने पर उसका मन अन्‍यत्र नहीं भटकता और सारे जगत को ईश्‍वरमय देखते हुए वे ईश्वर में ही समा जाते हैं।ʼʼ

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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