गीता माता -महात्मा गांधी
गीता-प्रवेशिका
श्रीभगवानुवाच आत्मा से मनुष्य आत्मा का उद्धार करे, उसकी अधोगति न करे। आत्मा का बन्धु आत्मा है और आत्मा ही आत्मा का शत्रु है। बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जित:। उसी का आत्मा बन्धु है जिसने अपने बल से मन को जीता है जिसने मन को जीता नहीं वह अपने ही साथ शत्रु का-सा बर्ताव करता है। प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थित:। पूर्ण शांति से, निर्भय ब्रह्मचर्य में दृढ़ रहकर, मन को मारकर, मुझमें परायण हुआ योगी मेरा ध्यान धरता हुआ बैठे। टिप्पणी - ब्रह्मचारी व्रत का अर्थ केवल वीर्य-संग्रह ही नहीं है, बल्कि ब्रह्म को प्राप्त करने के लिए आवश्यक अहिंसादि सभी व्रत हैं। सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि। सर्वत्र समभाव रखने वाला योगी अपने को सब भूतों में और सब भूतों को अपने में देखता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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