गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
अठारहवां अध्याय
संन्यासयोग
राजन्संस्कमृत्य संस्मृत्य संवाददिमममद्भुतम्। हे राजन! केशव और अर्जुन के इस अद्भुत और पवित्र संवाद का स्मरण कर करके, मैं बारंबार आनंदित होता हूँ। तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे:। हे राजन! हरि के उस अद्भुत रूप का खूब स्मरण कर करके मैं बहुत विस्मित होता हूँ और बारंबार आनंदित होता रहता हूँ। यत्न योगेश्वर: कृष्णो यत्न पार्थो धनुर्धर:। जहाँ योगेश्वर कृष्ण हैं, जहाँ धनुर्राधारी पार्थ है, वहाँ श्री है, विजय है, वैभव है और अविचल नीति है, ऐसा मेरा अभिप्राय है। टिप्पणी - योगेश्वर कृष्ण से तात्पर्य है अनुभव सिद्ध शुद्ध ज्ञान और धनुर्धारी अर्जुन से अभिप्राय है तदनुसारिणी किया, इन दोनों का संगम जहाँ हो, वहाँ संजय ने जो कहा है उसके सिवा दूसरा क्या परिणाम हो सकता है? ॐ तत्सत् इति श्रीमद्भगवद्गीता रूपी उपनिषद् अर्थात् ब्रह्मविद्यान्तर्गतयोगशास्त्र के श्रीकृष्णार्जुन संवाद का ʻसंन्यासयोग̕ नामक अठारहवां अध्याय। ॐ शान्ति |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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