गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
अठारहवां अध्याय
संन्यासयोग
कच्चिदेतच्छतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा। हे पार्थ! यह तूने एकाग्र चित्त से सुना? हे धनंजय! इस अज्ञान के कारण जो मोह तुझे हुआ था वह क्या नष्ट हो गया। अर्जुन उवाच अर्जुन बोले - हे अच्युत! आपकी कृपा से मेरा मोह-नाश हो गया है। मुझे समझ आ गई है, शंका का समाधान हो जाने से मैं स्वस्थ हो गया हूँ। आपका कहा करूंगा। संजय उवाच संजय बोले - इस प्रकार वासुदेव और महात्मा अर्जुन का यह रोमांचित करने वाला संवाद मैंने सुना। व्यासप्रसादाच्छ तवानेतद्गुह्यमहं परम्। व्यासजी की कृपा से योगेश्वर श्रीकृष्ण के श्रीमुख से मैंने यह गृह्य परम योग सुना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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