गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
अठारहवां अध्याय
संन्यासयोग
शमो दमस्तप: शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च। शम, दम, तप, शोच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, अनुभव, आस्तिकता- ये ब्राह्मण के स्वभाव जन्य कर्म हैं। शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम्। शौर्य, तेज, धृति, दक्षता, युद्ध में पीठ न दिखलाना, दान, शासन- ये क्षत्रिय के स्वभावजन्य कर्म हैं। कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम्। खेती, गो-रक्षा, व्यापार- ये वैश्य के स्वभावजन्य कर्म हैं। और शूद्र का स्वभावजन्य कर्म सेवा है। स्वे स्वे कर्मण्यभिरत: संसिद्धिं लभते नर:। स्वयं अपने कर्म में रत रहकर पुरुष मोक्ष पाता है। अपने कर्म में रत हुआ मनुष्य किस प्रकार मोक्ष पाता है, सुन। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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