गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सत्रहवां अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्। देव, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी की पूजा, पवित्रता, सरलता, ब्रह्मचर्य, अहिंसा- यह शारीरिक तप कहलाता है। अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहिंत च यत्। दु:ख न देने वाला, सत्य, प्रिय, हितकर वचन तथा धर्म ग्रथों का अभ्यास- यह वाचिक तप कहलाता है। मन:प्रसाद: सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रह:। मन की प्रसन्नता, सौम्यता, मौन, आत्म संयम, भावना- शुद्धि यह मानसिक तप कहलाता है। श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरै:। समभाव युक्त पुरुष जब फलेच्छा का त्याग करके परम श्रद्धा पूर्वक यह तीन प्रकार का तप करते हैं तब उसे बुद्धिमान लोग सात्त्विक तप कहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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