गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सत्रहवां अध्याय
श्रद्धात्रयविभागयोग
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना:। दंभ और अहंकार वाले, काम और राग के बल से प्ररित जो लोग शास्त्रीय विधि से रहित घोर तप करते हैं, वे मूढ़ लोग शरीर में स्थित पंच महाभूतों को और अन्त:करण में विद्यमान मुझको भी कष्ट देते हैं। ऐसों को आसुरी निश्चय वाला जान। आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय:। आहार भी तीन प्रकार से प्रिय होता है। उसी प्रकार यज्ञ, तप और दान भी तीन प्रकार से प्रिय होता है। उसका यह भेद तू सुन- आयु: सत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धना:। आयुष्य, सात्त्विकता, बल, आरोग्य, सुख और रुचि बढ़ाने वाले, रसदार, चिकने पौष्टिक और मन को रुचिकर आहार सात्त्विक लोगों को प्रिय होते हैं। कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिन:। तीखे, खट्टे, खारे, बहुत गरम, चरपरे, रूखे, दाहकारक आहार राजस लोगों को प्रिय होते हैं और वे दु:ख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले होते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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