गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
सोलहवां अध्याय
दैवासुरसंपद् विभागयोग
एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धय:। भयंकर काम करने वाले, मंदमति, दुष्टगण इस अभिप्राय को पकड़े हुए जगत के शत्रु, उसके नाश के लिए उत्पन्न होते हैं। काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता: । तृप्त न होने वाली कामनाओं से भरपूर, दंभी, मानी, मदांध, अशुभ निश्चल वो मोह से दुष्ट इच्छाऐं ग्रहण करके प्रवृत्त होते हैं। चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: । प्रलय पर्यंत अंत ही नहीं होने वाली ऐसी अपरिमित चिंता का आश्रय लेकर, कामों के परम भोगी, ‘भोग ही सर्वस्व है’ ऐसा निश्चय करने वाले, सैंकडों आशाओं के जाल में फंसे हुए, कामी, क्रोधी, विषय- भोग के लिए अन्यायपूर्वक धन- संचय की चाह रखते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज