गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 191

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
पंद्रहवां अध्याय
पुरुषोत्तम योग


श्रोत्रं चक्षु: स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च ।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते ॥9॥

और वह कान, आंख, त्‍वचा, जीभ, नाक और मन का आश्रय लेकर विषयों का सेवन करता है।

टिप्‍पणी- यहाँ ‘विषय’ शब्‍द का अर्थ वीभत्‍स विलास नहीं है, बल्कि प्रत्‍येक इंद्रिय की स्‍वाभाविक क्रिया है, जैसे आंख का विषय है देखना, कान का सुनना, जीभ का चखना। ये क्रियाऐं जब विकार वाली, अहं भाव वाली होती हैं तब दूषित- वीभत्‍स ठहरती हैं। जब निर्विकार होती हैं तब वे निर्दोष हैं। बच्‍चा आंख से देखता या हाथ से छूता हुआ विकार नहीं पाता, इसलिए नीचे के श्‍लोक में कहते हैं-

उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम् ।
विमूढ़ा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुष: ॥10॥

शरीर का त्‍याग करने वाले या उसमें रहने वाले अथवा गुणों का आश्रय लेकर भोग भोगने वाले को इस अंश रूपी ईश्वर को, मूर्ख नहीं देखते, किंतु दिव्‍य चक्षु ज्ञानी देखते हैं।

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम् ।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतस: ॥11॥

यत्‍न करते हुए योगीजन अपने में स्थित इस ईश्वर को देखते हैं। जिन्‍होंने आत्‍म-शुद्धि नहीं की है, ऐसे मूढ़ जन यत्‍न करते हुए भी इसे नहीं पहचानते।

टिप्‍पणी- इसमें और नवें अध्‍याय में दुराचारी को भगवान ने जो वचन दिया है उसमें विरोध नहीं है। अकृतात्‍मा से तात्‍पर्य है भक्तिहीन। स्‍वेच्‍छाचारी, दुराचारी जो नम्रतापूर्वक श्रद्धा से ईश्वर को भजता है वह आत्‍म शुद्ध हो जाता है और ईश्वर को पहचानता है। जो यम- नियमादि की परवाह न कर केवल बुद्धि प्रयोग से ईश्वर को पहचानना चाहते हैं, वे अचेता- चित्त से रहित, राम से रहित, राम को नहीं पहचान सकते।

यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ॥12॥

सूर्य में विद्यमान जो तेज समूचे जगत को प्रकाशित करता है और जो तेज चंद्र में तथा अग्नि में विद्यमान है, वह मेरा है, ऐसा जान।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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