गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 170

गीता माता -महात्मा गांधी

Prev.png
अनासक्तियोग
बारहवां अध्याय
भक्तियोग


कलेशोऽधिकतरस्‍तेषामव्‍यक्‍तासक्‍तचेतसाम्।
अव्‍यक्‍त हि गति र्दु:खं देहवद्भिरवाप्‍यते।।5।।

जिनका चित्त अव्‍यक्‍त में लगा हुआ है उन्‍हें कष्‍ट अधिक है। अव्‍यक्‍त गति को देहधारी कष्‍ट से ही पा सकता है।

टिप्‍पणी- देहधारी मनुष्‍य अमूर्त स्‍वरूप की केवल कल्‍पना ही कर सकता है, पर उसके पास अमूर्त स्‍वरूप के लिए एक भी निश्‍चयात्‍मक शब्‍द नहीं है, इ‍सलिए उसे निषेधात्‍मक ʻनेति̕ शब्‍द से संतोष करना ठहरा। इस दृष्टि से मूर्ति-पूजा का निषेध करने वाले भी सूक्ष्‍म रीति से विचारा जाय तो मूर्ति-पूजक ही होते हैं। पुस्‍तक की पूजा करना, ये सभी साकार पूजा के लक्षण हैं। तथापि साकार के उस पार निराकार अचिंत्‍य स्‍वरूप है, इतना तो सबके समझ लेने में ही निस्‍तार है। भक्ति की पराकाष्‍ठा यह है कि भक्त भगवान में विलीन हो जाय और अंत में केवल एक अद्वितीय अरूपी भगवान ही रह जाय। पर इस स्थिति को साकार द्वारा सुलभता से पहुँचा जा सकता है, इसलिए निराकार को सीधे पहुँचने का मार्ग कष्‍टसाध्‍य बतलाया है।

ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्‍य मत्‍परा:।
अनन्‍येनैव योगेन मां ध्‍यायन्‍त उपासते।।6।।
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्‍युसंसारसागरात्।
भवामि नचिरात्‍पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।।7।।

परंतु हे पार्थ! जो मुझमें परायण रहकर, सब कर्म मुझे समर्पण करके, एक निष्‍ठा से मेरा ध्‍यान धरते हुए मेरी उपासना करते हैं और मुझमें जिनका चित्त पिराया हुआ है उन्‍हें मृत्‍युरूपी संसार-सागर से मैं झटपट पार कर लेता हूं  

मय्येव मन आधत्‍स्‍व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्‍यसि मय्येव अत ऊर्ध्‍व न संशय:।।8।।

अपना मन मुझमें लगा, अपनी बुद्धि मुझमें रख, इससे इस जन्‍म के बाद नि:संशय मुझे ही पावेगा।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः