गीता माता -महात्मा गांधी पृ. 163

गीता माता -महात्मा गांधी

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अनासक्तियोग
ग्‍यारहवां अध्याय
विश्‍वरूपदर्शनयोग


तस्‍मात्‍वमुत्ष्ठि यशो लभस्‍व
जित्‍वा शत्रून्‍भुङ्‌क्ष्‍व राज्‍यं समृद्धम्‌।
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्‍यसाचिन्।।33।।

इसलिए तू उठ खड़ा हो, कीर्ति प्राप्‍त कर, शत्रु को जीतकर धन-धान्‍य से भरा हुआ राज्‍य भोग। इन्‍हें मैंने पहले से ही मार रखा है। हे सव्‍यसाची! तू तो केवल निमित्त रूप बन।  

द्रोणं च भीष्‍मं च जयद्रथ च
कर्ण तथान्‍यानपि योधवीरान्।
मया हतांस्‍त्‍वं जहि मा व्‍यथिष्‍ठा
युध्‍यस्‍व जेतासि रणे सपत्‍नान्।।34।।

द्रोण, भीष्‍म, जयद्रथ, कर्ण और अन्‍यान्‍य योद्धाओं को मैं मार ही चुका हूँ। उन्‍हें तू मार। डर मत, लड़। शत्रु को तू रण में जीतने को है।

संजय उवाच
एतच्‍छुत्‍वा वचनं केशवस्‍य
कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी।
नमस्‍कृत्‍वा भूय एवाह कृष्‍णं
सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्‍य।।35।।

संजय ने कहा-

केशव के ये वचन सुनकर हाथ जोडे़, कांपते, बारंबार नमस्‍कार करते हुए, डरते-डरते प्रणाम करके मुकुटधारी अर्जुन श्रीकृष्‍ण से गद्-गद् कंठ से इस प्रकार बोले-

अर्जुन उवाच
स्‍थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्‍या
जगत्‍प्रहृष्‍यत्‍यनुरज्‍यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति
सर्वे नमस्‍यन्ति च सिद्धसंधा:।।36।।

अर्जुन बोले-

हे हृषीकेश! आपका कीर्तन करके जगत को जो हर्ष होता है और आपके लिए जो अनुराग उत्‍पन्‍न होता है वह उचित्त ही है। भयभीत राक्षस इधर-उधर भाग रहे हैं और सिद्धों का सारा समुदाय आपको नमस्‍कार कर रहा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

गीता माता
अध्याय पृष्ठ संख्या
गीता-बोध
पहला अध्याय 1
दूसरा अध्‍याय 3
तीसरा अध्‍याय 6
चौथा अध्‍याय 10
पांचवां अध्‍याय 18
छठा अध्‍याय 20
सातवां अध्‍याय 22
आठवां अध्‍याय 24
नवां अध्‍याय 26
दसवां अध्‍याय 29
ग्‍यारहवां अध्‍याय 30
बारहवां अध्‍याय 32
तेरहवां अध्‍याय 34
चौदहवां अध्‍याय 36
पन्‍द्रहवां अध्‍याय 38
सोलहवां अध्‍याय 40
सत्रहवां अध्‍याय 41
अठारहवां अध्‍याय 42
अनासक्तियोग
प्रस्‍तावना 46
पहला अध्याय 53
दूसरा अध्याय 64
तीसरा अध्याय 82
चौथा अध्याय 93
पांचवां अध्याय 104
छठा अध्याय 112
सातवां अध्याय 123
आठवां अध्याय 131
नवां अध्याय 138
दसवां अध्याय 147
ग्‍यारहवां अध्याय 157
बारहवां अध्याय 169
तेरहवां अध्याय 174
चौहदवां अध्याय 182
पंद्रहवां अध्याय 189
सोलहवां अध्याय 194
सत्रहवां अध्याय 200
अठारहवां अध्याय 207
गीता-प्रवेशिका 226
गीता-पदार्थ-कोश 238
गीता की महिमा
गीता-माता 243
गीता से प्रथम परिचय 245
गीता का अध्ययन 246
गीता-ध्यान 248
गीता पर आस्था 250
गीता का अर्थ 251
गीता कंठ करो 257
नित्य व्यवहार में गीता 258
भगवद्गीता अथवा अनासक्तियोग 262
गीता-जयन्ती 263
गीता और रामायण 264
राष्ट्रीय शालाओं में गीता 266
अहिंसा परमोधर्म: 267
गीता जी 270
अंतिम पृष्ठ 274

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