गीता माता -महात्मा गांधी
अनासक्तियोग
ग्यारहवां अध्याय
विश्वरूपदर्शनयोग
तस्मात्वमुत्ष्ठि यशो लभस्व इसलिए तू उठ खड़ा हो, कीर्ति प्राप्त कर, शत्रु को जीतकर धन-धान्य से भरा हुआ राज्य भोग। इन्हें मैंने पहले से ही मार रखा है। हे सव्यसाची! तू तो केवल निमित्त रूप बन। द्रोणं च भीष्मं च जयद्रथ च द्रोण, भीष्म, जयद्रथ, कर्ण और अन्यान्य योद्धाओं को मैं मार ही चुका हूँ। उन्हें तू मार। डर मत, लड़। शत्रु को तू रण में जीतने को है। संजय उवाच संजय ने कहा- केशव के ये वचन सुनकर हाथ जोडे़, कांपते, बारंबार नमस्कार करते हुए, डरते-डरते प्रणाम करके मुकुटधारी अर्जुन श्रीकृष्ण से गद्-गद् कंठ से इस प्रकार बोले- अर्जुन उवाच अर्जुन बोले- हे हृषीकेश! आपका कीर्तन करके जगत को जो हर्ष होता है और आपके लिए जो अनुराग उत्पन्न होता है वह उचित्त ही है। भयभीत राक्षस इधर-उधर भाग रहे हैं और सिद्धों का सारा समुदाय आपको नमस्कार कर रहा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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